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जल जीवन हरियाली अभियान को झटका, 24 कट्ठे के पोखर में आधा सरकारी, आधा निजी अतिक्रमण..

सदर प्रखंड में ही तकरीबन 60 से ज्यादा पोखर हैं लेकिन धरातल पर स्थिति यह है कि एक-दो को छोड़कर सारे पोखर या तो अतिक्रमण के शिकार हो गए हैं या फिर धीरे-धीरे अतिक्रमण का शिकार हो रहे हैं. मजे की बात तो यह है कि यह अतिक्रमण केवल आम लोगों द्वारा नहीं बल्कि, स्थानीय प्रशासन द्वारा भी किया गया है.

- जल संचय को बने पोखर का धरातल पर अब नहीं है नामोनिशान.
- कुछ पर बना सामुदायिक भवन व पार्क कुछ जमीन निजी लोगों के कब्जे में

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: बिहार सरकार जहां एक और जल जीवन हरियाली अभियान चलाकर पोखरा, तालाबों एवं नहरों को अतिक्रमण मुक्त कराने की मुहिम चला रही है. वहीं, दूसरी तरफ धरातल पर स्थिति यह है कि लगभग सभी पोखरे अतिक्रमण के शिकार हो गए हैं. कहीं-कहीं तो तरह से नेस्तनाबूद हो गए हैं. ऐसे में पोखर तो क्या पोखरों के निशान भी अब वहां देखने को नहीं मिल रहे. जहां कभी जल संचयन के लिए व्यवस्था की गई थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सदर प्रखंड में ही तकरीबन 60 से ज्यादा पोखर हैं लेकिन धरातल पर स्थिति यह है कि एक-दो को छोड़कर सारे पोखर या तो अतिक्रमण के शिकार हो गए हैं या फिर धीरे-धीरे अतिक्रमण का शिकार हो रहे हैं. मजे की बात तो यह है कि यह अतिक्रमण केवल आम लोगों द्वारा नहीं बल्कि, स्थानीय प्रशासन द्वारा भी किया गया है.

नया बाजार मोमिन मुहल्ला में अवस्थित पोखर से आस पास के लोगों के दैनिक जरूरतें पूरी होती थी. और तो और जब तक यह पोखर यहां था तब तक आसपास के इलाकों में अंडर ग्राउंड वॉटर लेवल बेहतर था. लेकिन तकरीबन 10 साल पूर्व इस पोखर को पूरी तरह पाटकर यहां सामुदायिक भवन का निर्माण करा दिया गया साथ ही साथ पोखर की बची जमीन पर चिल्ड्रन पार्क बना दिया गया. उसके बाद भी जो जमीन बची वह स्थानीय लोगों के कब्जे में है. तात्कालीन सांसद लाल मुनि चौबे की निधि बने सामुदायिक भवन का निर्माण होने के बाद 24 नवंबर 2009 को नगर परिषद की तात्कालीन मुख्य पार्षद शकुंतला देवी तथा उप मुख्य पार्षद इफ्तिखार अहमद की उपस्थिति में उद्घाटन किया गया था. बताया जा रहा है कि उस वक्त बहुत सारी जमीन यहां बच गई थी जिसका स्थानीय लोगों ने भी अतिक्रमण कर लिया.

स्थानीय निवासी मोहम्मद इकबाल बताते हैं कि, उनके जन्म के पहले से ही यहां पोखर हुआ करता था. स्थानीय लोग अपनी जरूरतों के लिए इस पोखर के जल का इस्तेमाल करते थे लेकिन, बाद में इस पोखर को पाट दिया गया. रवि कुमार बताते हैं कि, पोखर के कारण आसपास के इलाकों में अंडरग्राउंड वाटर लेवल भी ठीक था लेकिन पोखर पाट दिए जाने के कारण वॉटर लेवल बहुत नीचे चला गया है.कलबासो देवी बताती हैं कि, पोखर कई दशकों पूर्व से यहां पर था लेकिन, कालांतर में इसे भर दिया गया. हालांकि, मुख्यमंत्री अगर पोखर को फिर से उसके पुराने अस्तित्व में लाना चाहते हैं तो यह एक बेहतर पहल होगी.

शाहिद हुसैन बताते हैं कि पोखर का पूरी तरह से अतिक्रमण हो गया है. अगर सरकार पोखर को कमलदह पार्क की तरह ही सुसज्जित कर दिया तो यह जहां जल संरक्षण के लिए एक बेहतर प्रयास हुआ. वहीं लोग भी यहां पहुंचकर अपनी थकान मिटा सकेंगे. स्थानीय वार्ड पार्षद पुष्पा देवी का कहना है कि, यहां स्थानीय लोगों के द्वारा अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए पोखरे की जमीन का अतिक्रमण कर लिया गया है. कुल 24 कट्ठे में फैले विशाल पोखर के स्थान पर तकरीबन 12 कट्ठे में सामुदायिक भवन तथा पार्क बनाया गया है. शेष जमीन निजी लोगों के कब्जे में है.

बहरहाल, देखने वाली बात अब यह होगी कि, सरकार अपने अभियान की सफलता के लिए इस तरह के अतिक्रमण को कैसे हटा पाती है.













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