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बनवासी राम की चरण पादुका लेकर अयोध्या लौटे भाई भरत ..

काफी दुखित व व्याकुल देखकर उन्हें बहुत समझाते हैं और उनके सकुशल अयोध्या पहुंचने के लिए उनके रथ पर अपना साथी उनके साथ लगा देते हैं. मंत्री सुमंत विलाप करते हुए संध्या काल के बाद अयोध्या पहुंचते हैं और पूर्व में घटित श्रवण कुमार की कथा रानी कौशल्या को जाकर बताते हैं. 
श्री राम की चरण पादुका लेकर अयोध्या लौटते भरत जी

- विजयादशमी महोत्सव के 11 वें दिन की लीला का हुआ मंचन.
- रासलीला में दिखाया गया राजा भृतहरि का प्रसंग.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: श्री रामलीला समिति सदस्य के तत्वाधान में विशाल रामलीला मंच पर चल रहे 20 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव 2019 के 11 वें दिन बुधवार को वृंदावन से आई सर्वश्रेष्ठ मंडल श्री गोविंद गोपाल लीला संस्थापक सह स्वामी कन्हैया लाल शर्मा दत्तात्रेय व विष्णु कुमार शर्मा दत्तात्रेय के सफल निर्देशन में रात्रि मंचित लीला के दौरान रामलीला प्रसंग में दशरथ मरण तथा चित्रकूट में भरत मिलन नामक चरित्र का मंचन किया गया, जिसमें दिखाया गया कि, जब मंत्री सुमंत प्रभु श्री राम-लक्ष्मण व सीता को गंगा के समीप छोड़कर लौटते हैं तो काफी दुखित व व्याकुल देखकर उन्हें बहुत समझाते हैं और उनके सकुशल अयोध्या पहुंचने के लिए उनके रथ पर अपना साथी उनके साथ लगा देते हैं. मंत्री सुमंत विलाप करते हुए संध्या काल के बाद अयोध्या पहुंचते हैं और पूर्व में घटित श्रवण कुमार की कथा रानी कौशल्या को जाकर बताते हैं. श्री रामचंद्र की चिंता में महाराज दशरथ की हालत काफी बिगड़ जाती है और उनका देहांत हो जाता है. राजन के देहांत की खबर सुनकर विशिष्ट जी आते हैं और वह एक दूत को भरत जी को बुलाने के लिए उनके ननिहाल भेजते हैं. भरत जी आते हैं और अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार करते हैं. संस्कार के पश्चात भरत जी श्री राम को मनाने के लिए चित्रकूट जाने की तैयारी करते हैं. मार्ग में उनसे निषाद राजा की भेंट होती है. निषाद राजा उन्हें लेकर प्रभु श्री राम के पास पहुंचते हैं. जहां भगवान श्री राम और भरत जी का सुंदर मिलन होता है. भगवान श्रीराम को जब यह पता चलता है कि, उनके पिता का देहांत हो गया है तो दुखित होते हैं और नदी के किनारे जाकर पिता को श्रद्धांजलि देते हैं. भरत उनको अयोध्या लौटने की विनती करते हैं परंतु श्री राम पिता के वचनों द्वारा वचनबद्ध होने की बात कह कर लौटने से इनकार करते हैं. वह भरत जी पर कृपा करके अपनी चरण पादुका दे देते हैं. भरत जी चरण पादुका को लेकर अयोध्या लौटते हैं. और राजसिंहासन में पादुकाओं को स्थापित कर देते हैं. यह दृश्य देख दर्शन भाव विभोर हो जाते हैं और लोगों के आंख से आंसू छलकने लगते हैं. मंचन के दौरान पूजा पंडाल श्रद्धालुओं से खचाखच भरा होता है. 

वहीं, दूसरी तरफ की कृष्णा लीला में राजा भृतहरि चरित्र का मंचन किया गया जिसमें दिखाया गया कि राजा भृतहरि गुरु गोरखनाथ शिष्य रहते हैं और वह गुरुदेव के आश्रम पहुंचकर वैराग्य शतक लिखते हैं. परंतु बीच में किसी कारणवश आश्रम छोड़ अपने राज्य को लौट आते हैं. राजा भृतहरि गुर्जर राज्य के महाराजा होते हैं. उनका विवाह पिंगला नामक स्त्री से होता है. राजा मित्र हरि पिंगला को अत्यधिक प्रेम करते हैं. उनको देखे बिना वह भोजन भी नहीं करते थे. वह रानी पिंगला के प्रेम में वशी मुक्त कर के रह जाते हैं. जब वह आश्रम नहीं लौटते हैं तो गुरु गोरखनाथ जी को चिंता होने लगती है कि, जो वैराग्य शतक अधूरा रह गया है. उसे कौन लिखेगा? वह राजा भृतहरि को लेने के लिए कई शिष्य भेजते हैं. परंतु रानी पिंगला सभी शिष्यों को बैरंग वापस लौटा देती हैं. दूसरी तरफ मंछदर नाथ जी महाराज संकल्प कराके राजा भृतहरि को लाने जाते हैं और वहां पशुओं की देखभाल करने का कार्य करने लगते हैं. कुछ समय में प्रभावित होकर राजा में भृतहरि उन्हें अपना सेनापति बनाते हैं. मंछदर नाथ जी अपनी माया से वहां नाना प्रकार के कार्य करके राजा को प्रभावित कर लेते हैं. राजा का पत्नी मोह भंग हो जाता है. वह गुरु गोरख नाथ के आश्रम चले जाते हैं. गुरु उन्हें पिंगला के पास मां कहकर शिक्षा मांगने को भेजते हैं.













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