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बीत गई दीपावली, छोड़ गई अनेकों सवाल ..

क्या कारण हैं कि गरीब और गरीब होता जा रहा है जबकि अमीर और ज्यादा अमीर? भारत में साल दर साल धनकुबेरों की संख्या में खूब वृद्धि हो रही है वहीं, भूख, कुपोषण के कारण होने वाली मौतों की संख्या के मामले में देश की स्थिति अपने गरीब पड़ोसी देशों से भी गई गुजरी है.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर; एक ओर दीपावली पर्व हमें अंधकार से प्रकाश, असत्य से सत्य, अज्ञान से ज्ञान और मृत्यु से अमरत्व की ओर उन्मुख होने की प्रेरणा देता है और बाहरी दुनिया को प्रकाशित करने के साथ साथ अंतःकरण को भी ज्ञान और उल्लास से आलोकित करता है फिर महर्षि विश्वामित्र की पावन भूमि पर दिपावली बगुला भगतों की दीपावली हो जाती हैं। इसकी उर्वर सांस्कृतिक भावभूमि पर अपसंस्कृति का परवान चढ़ जाता हैं.: एक तरफ जहां पूरा शहर दीपावली मनाने में जुटा हुआ है. वहीं, एक वर्ग ऐसा भी है जो दूसरों के घरों के सजे हुए दिए तथा पटाखों के शोर को महसूस कर अपनी दीपावली मनाएगा. सरकार भले ही अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक विकास पहुंचाने की बात करती हो लेकिन, विकास की सच्चाई यह है कि, आज भी वंचितों, मजलूमों तथा गरीबों का सहारा कोई नहीं है. ऐसे में दीपावली में घर रोशन तो होंगे लेकर केवल सामर्थ्य वालों के. झोपड़पट्टी में अपना जीवन बसर करने वाले लोगों के लिए यह दीपावली भी अभावों एवं संकटग्रस्तता की दीपावली रही. समझदारों गरीब के लिए तो यह आम बात थी. लेकिन बच्चे तो बच्चे हैं, उनकी आंखों में जगमगाती  लाइटों की चमक तथा  कानों में तेज आवाज के साथ फटते पटाखों की गूंज भी दीपावली का एहसास रहा. यूं तो शहर में कई सामाजिक संगठन गरीबों का मसीहा होने की बात कहते हैं लेकिन, दीपावली के दिन वह भी गरीबों के झोपड़ियों के सामने नजर नहीं आए. हालांकि, राजनीति में भविष्य तलाश रही एक महिला नेत्री ने अपने सामर्थ्य के मुताबिक प्रयास तो किया लेकिन, वंचितों की बड़ी तादाद के लिए वह नाकाफ़ी था.

दीपावली के त्योहार को मनाने के मुख्यतः दो कारण हैं. पहला, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लंकापति रावण का वध कर भगवान राम, भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता के साथ अपने राज्य अयोध्या वापस लौटे थे. पुष्पक विमान से रात के अंधेरे में अयोध्या पहुंचे राम के स्वागत के लिए अयोध्यावासियों ने घर के बाहर दिए जलाए और रौशनी कर विमान को यथास्थान उतरने की राह दिखाई. कालांतर में यह उस घटना को याद करने और खुशी मनाने की परंपरा के तौर पर प्रचलित हुआ.

दूसरा कारण, धन, सुख और समृद्धि की देवी लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की पूजा अर्चना कर धनार्जन व लाभ की कामना करना है. आश्चर्य की बात यह है कि आज दीपावली के पहले कारण की चर्चा बहुत कम होती है. नन्हें मुन्ने स्कूली छात्रों सहित किसी से भी यदि दीपावली के पर्व को मनाने का कारण पूछो तो वह धन, सुख और समृद्धि के लिए लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की पूजा अर्चना को ही इसका कारण बताता है. हालांकि, भगवान राम के अयोध्या लौटने की घटना वाले प्रसंग की चर्चा करने पर वे इससे अनभिज्ञता नहीं जताते. लेकिन पूजा सभी लक्ष्मी की ही करते हैं. भले ही मुहूर्त देर रात ही क्यों न हो?

लोगों का ऐसा व्यवहार यह साबित करने के लिए काफी है कि धन का लोगों के जीवन में कितना महत्व है. अन्य त्यौहार जहां, साल दर साल अपना महत्व खोते जा रहें हैं वहीं दीपावली का त्योहार प्रतिवर्ष भव्यता का नया इतिहास रचता जा रहा है. आखिर, ऐसा क्यों? दीपोत्सव की खुमारी के बीच यही सही समय है कि हम उन छिपे संदेशों को जाने ताकि हमारी कामना रूपी दिए की रौशनी सदा प्रज्वलित रहें और कभी मंद न पड़े. हालांकि इसके साथ ही एक सवाल भी सदैव अस्तित्व में रहता है कि क्या देश में केवल अमीरों का दिया ही लगातार जल रहा है? क्या कारण हैं कि गरीब और गरीब होता जा रहा है जबकि अमीर और ज्यादा अमीर? भारत में साल दर साल धनकुबेरों की संख्या में खूब वृद्धि हो रही है वहीं, भूख, कुपोषण के कारण होने वाली मौतों की संख्या के मामले में देश की स्थिति अपने गरीब पड़ोसी देशों से भी गई गुजरी है. कर्ज के तले दबे किसानों द्वारा हर साल सैकड़ों की तादात में मौत को गले लगाने की घटना भी वैश्विक स्तर पर शर्मिंदगी का कारण बन रही है. लेकिन ऐसा हो क्यों रहा है जबकि सभी सरकारें गरीबों और किसानों का हितैषी होने का दंभ भरती हैं?

सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न! आखिर वे क्या कारण हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में बाजार और उसमें सुधार के प्रयासों का सबसे ज्यादा लाभ अमीर को ही मिल रहा है? क्यों अमीर और गरीब बीच खाई कम होने के बजाए बढ़ती जा रही है? और क्यों अमीर, ज्यादा अमीर और गरीब ज्यादा गरीब होता जा रहा है?

इतने सारे क्यों का जवाब सिर्फ एक है, और वह है पब्लिक पॉलिसी अर्थात लोकनीतियों का खामियों से युक्त होना. विडंबना है कि इस देश में अब भी सरकारी फैसलों का अच्छी नीति की बजाए अच्छी नियत से युक्त होना ज्यादा जरूरी माना जाता है. इस बात को हम एक उदाहरण की सहायता से समझ सकते हैं. तरक्की के लिए आवश्यक है कि, किसी व्यवसाय में लगा व्यक्ति लगातार अपने व्यवसाय का विस्तार करता रहे. इसके लिए वह अपने लाभ का कुछ हिस्सा बचाकर अथवा कहीं से कर्ज आदि लेकर व्यवसाय में निवेश कर उसमें विस्तार कर सकता है. बड़े उद्योगों के लिए यह प्रक्रिया बड़ी स्वाभाविक है और स्वयं सरकार अथवा बैंकों द्वारा उसे कर्ज उपलब्ध कराया जाता है. जबकि गरीब लोगों के लिए रास्ते इतने मुश्किल बना दिये जाते हैं कि वे प्रगति के रास्ते से बिल्कुल कट जाते है.













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