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सूप पीटकर आज घर से बाहर की जाएगी दरिद्रता ..

बचपन में सुबह-सुबह आस पड़ोस के बच्चों के आंखों में काजल की मोटी-मोटी लकीरे देखकर यह समझ में आ जाता था कि, उनके यहां भी दरिद्रा को भगाया गया है. लेकिन फैशन के इस दौर में अब वह देखना भी मयस्सर नहीं हो पाता.

- वर्षों से चली आ रही दरिद्रता को भगाने की अनोखी परंपरा.
- दरिद्रता के साथ ही शोक दुख तथा आलस हो जाते हैं घर से बाहर.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: आधुनिकता के दौर में हम परंपराओं को भूलते जा रहे हैं. माना जा रहा है कि, ऐसा परिवारों के टूटने के कारण हो रहा है. पहले जहां संयुक्त परिवार हुआ करते थे. वहीं, परंपराओं के निर्वहन के जिम्मेदारी भी अलग-अलग सदस्यों के जिम्मे होती थी लेकिन, अब एकल परिवार होने की वजह से लोग उन परंपराओं से दूर होते चले जा रहे हैं जो कि, सदियों से चली आ रही है. ऐसी ही एक परंपरा है. दीपावली के अगले दिन अहले सुबह सूप पीटते हुए घर से दरिद्रता भगाने की परंपरा. यह परंपरा सभी ने अपने बचपन में जरूर देखी, जानी एवं सुनी होगी.

कैसे निभाई जाती है दरिद्रा को भगाने की परंपरा:

दीपावली के अगले दिन मां, दादी अथवा घर की कोई अन्य महिला सुबह चार बजे ही टूटा हुआ सूप पीटते लक्ष्मी अंदर, दरिद्रा बाहर कहते हुए मकान के हर कमरे के दरवाजे से गुजरती हैं. अंत में इस सूप को घर से काफी दूर ले जाकर फेंक दिया जाता है. फिर दरिद्रा को बाहर करने वाली महिला घर के बाहर ही स्नान कर घर के अंदर प्रवेश करती हैं. यही नहीं दरिद्रता को भगाया जाने के बाद घर की पूरी साफ सफाई भी की जाती है. दरिद्रा को भगाए जाने के पश्चात सूप को जला दिया जाता है तथा उससे निकलने वाले धुएं से काजल बना कर घर के सभी बच्चों के आंखों में लगाने की भी परंपरा है. बचपन में सुबह-सुबह आस पड़ोस के बच्चों के आंखों में काजल की मोटी-मोटी लकीरे देखकर यह समझ में आ जाता था कि, उनके यहां भी दरिद्रा को भगाया गया है. लेकिन फैशन के इस दौर में अब वह देखना भी मयस्सर नहीं हो पाता. स्थिति यह है कि, जिन घरों में यह परंपरा अब भी निभाई जाती है वहां भी बच्चे अब काजल का टीका लगाना फैशन के विरुद्ध समझते हैं.ऐसे में आज के समय में यह परंपरा लुप्त होती जा रही है. 

कौन हैं दरिद्रा, लक्ष्मी पूजन से क्या है संबंध?:

आचार्य भारत भूषण जी महाराज के मुताबिक ज्येष्ठा हिन्दू धर्म की देवी हैं. ज्येष्ठा सौभाग्य और सुंदरता की देवी लक्ष्मी जी की बड़ी बहन मानी जाती हैं जो कि, बिलकुल उनके विपरीत हैं. यह अशुभ घटनाओं और पापियों के अलावा आलस, गरीबी, दुख, कुरूपता से भी संबंधित मानी जाती हैं. इन्हें दुर्भाग्य की देवी कहा जाता है. इन्हें अपने घर से दूर रखने के लिए ही लोग इनकी पूजा करते हैं. इन्हें अलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है. देवी ज्येष्ठा का जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था. उनकी छोटी बहन लक्ष्मी जी हैं. देवी ज्येष्ठा का विवाह एक दुःसह नामक ब्राह्मण के साथ हुआ था. यह नास्तिक और पापियों के घर में निवास करती हैं. बहरहाल, देश में बढ़ती हुई गरीबी तथा बेरोजगारी के बीच अब इस परंपरा का निर्वहन और भी आवश्यक हो गया है. क्या पता इस परंपरा के बहाने ही देश की दरिद्रता दूर हो जाए.














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