कंस के कुत्सित प्रयास को कृष्ण ने किया निष्फल ..
उन्हें यमुना नदी में खिलने वाले एक करोड़ नील कमल के फूल दरबार में भेंट करने होंगे. नील कमल के फूलों के लिए जब कृष्ण और बलराम नदी में प्रवेश करेंगे तो कालिया नाग उन्हें मार डालेगा. देवर्षि के वचन के अनुसार कंस ब्रज वासियों को यह संदेश भिजवाता है. संदेशा सुनने के बाद बृजवासी भयभीत हो जाते हैं.
- कालिया नाग के भय से मुक्त हुए ब्रजवासी.
- माता पार्वती को मिला तपस्या का फल, भगवान शिव से सम्पन्न हुआ विवाह.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: राष्ट्र संत नेहनिधि नारायण दास भक्तमाली जी द्वारा स्थापित सीता राम विवाह महोत्सव आश्रम के समीप स्थित मैदान में बने विशाल मंच पर श्री कृष्ण लीला में श्री राधा कृष्ण रासलीला संस्थान वृंदावन के कलाकारों के द्वारा श्री फतेह कृष्ण शास्त्री के निर्देशन में कालिया नाग प्रसंग का मंचन किया गया. इस प्रसंग में प्रभु श्री कृष्ण बाल्यकाल में जमुना में रह रहे कालिया नाग का किस प्रकार से मर्दन किया था उसका मनोहारी मंचन किया गया जिसमें प्रमुख पात्रों में श्री कृष्ण के रूप में लखन शर्मा नारद मुनि के रूप में रमेश चंद्र शर्मा विदूषक के रूप में निरंजन शर्मा नंद बाबा के रूप में रामबाबू शर्मा यशोदा के रूप में नृत्य गोपाल जी कालिया नाग के रूप में देव प्रकाश बलराम जी के रूप में वीरेंद्र शर्मा थे. वहीं, रात्रि में आश्रम के परिकरों और वृंदावन की लीला मंडली के द्वारा शिव विवाह के प्रसंग का भव्य मंचन किया गया.
श्रीकृण ने किया कंस का प्रयास निष्फल:
लीला प्रसंग में दिखाया जाता है कि यमुना नदी में प्रदूषण बढ़ गया है. नदी में रहने वाला कालिया नाग विष वमन कर जल को प्रदूषित कर रहा है. नभ में सौ योजन दूर विचरण करने वाले पक्षी भी उसके प्रभाव में आकर नदी में गिर जाते हैं. जिससे जमुना नदी में स्नान करने से लोग परहेज कर रहे हैं. आगे है कि मथुरा के राजदरबार में कंस बैठकर विचार कर रहे होते हैं कि, कृष्ण को कैसे मारा जाए. तभी आकाशवाणी होती है कि कृष्ण कंस का काल है. यह सुनते ही कंस गंभीर मुद्रा में डूब जाते हैं. उसके द्वारा कई राक्षस श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजे जाते हैं, लेकिन उनका प्रयास निष्फल रहता है. उसी वक्त देवर्षि नारद दरबार में प्रकट होते हैं. वह कंस को बताते हैं कि कृष्ण को मारने का एकमात्र उपाय यह है कि, ब्रज वासियों को यह संदेश भिजवाया जाए कि, उन्हें यमुना नदी में खिलने वाले एक करोड़ नील कमल के फूल दरबार में भेंट करने होंगे. नील कमल के फूलों के लिए जब कृष्ण और बलराम नदी में प्रवेश करेंगे तो कालिया नाग उन्हें मार डालेगा. देवर्षि के वचन के अनुसार कंस ब्रज वासियों को यह संदेश भिजवाता है. संदेशा सुनने के बाद बृजवासी भयभीत हो जाते हैं. प्रसंग में आगे दिखया जाता है कि यह संदेश सुनने के बाद भगवान श्री कृष्ण एक लीला रचते हैं तथा गेंद खेलने जमुना के तीर पहुंचते हैं. इसी बीच उनके सखा श्री दामा की गेंद नदी में चली जाती है. जिसे निकालने के बहाने श्री कृष्ण नदी में प्रवेश करते हैं तथा कालिया नाग से युद्ध करने के पश्चात उसे नाथ कर नदी से बाहर निकलते हैं. इस दौरान दर्शकों की जय-जयकार से पूरा परिसर गूँज उठता है.
सम्पन्न हुआ शिव विवाह:
संध्या वेला की लीला की शुभारंभ श्री गौरीशंकर विवाह लीला के साथ हुआ. जिसमें आश्रम के परिकरों ने भगवान शिव व माता पार्वती के विवाह प्रसंग का जीवंत मंचन किया. जिसमें दिखाया गया कि, राजा हिमाचल के घर उनकी पुत्री के रूप में माता पार्वती का अवतरण होता है. कुछ दिनों बाद देवर्षि नारद वहां पहुंचते हैं तथा हिमाचल के पूछने पर पार्वती के भविष्य के बारे में बताते हैं. जिससे उनके माता-पिता काफी चिंतित होते हैं. परंतु भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती जंगल में तपस्या करने जाती है. लेकिन उनके कठिन तप के बावजूद भगवान शिव का मन नहीं पिघलता है. तब देवताओं के काफी प्रयास के बाद भगवान शंकर उन्हें अपना अद्र्धागिनी बनाने का वरदान देते हैं. तत्पश्चात शिवजी की बारात राजा हिमाचल के दरवाजे पर जाती है. बारात को देख वहां के लोग भयभित हो जाते हैं और आपस में तरह-तरह की चर्चाएं करते हैं. इधर बसहा पर सवार भोले बाबा के नंग-धड़ंग शरीर पर सांप व बिच्छू देख पार्वती की माता नाराज़ हो जाती हैं. बावजूद माता गौरी के संग भगवान शंकर की शादी संपन्न होती है.
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