मनरेगा भ्रष्टाचार मामला: समरथ को नहिं दोष गुसाईं ..
जांच के दौरान एक योजना (जिसमें पंचायत के ललन शर्मा के दरवाजे से नागेदरपुर मुख्य सड़क तरक्की पीसीसी ढलाई कराई गई थी) को लेकर अनियमितता मामले में छह लोगों को आरोपी बनाया गया था. जिसमें कार्यपालक अभियंता, पीओ, जेई, तकनीकी सहायक, लेखापाल तथा पीआरएस शामिल थे.
भ्रष्टाचार की शिकार बनी पीआरएस |
- पीआरएस ने लगाया आरोप, पैसा नहीं देने पर कर दिया गया था बर्खास्त.
- आज भी जारी है भयादोहन का खेल, डर से चुप हैं कर्मी.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: डीआरडीए तथा उप विकास आयुक्त से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में तारीख में ज्यों आगे बढ़ती जा रही हैं एक-एक कर खुलासे सामने आते जा रहे हैं. खास बात यह है कि यह सभी खुलासे प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर हो रहे हैं. उधर, सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मामले में जिला स्तर के पदाधिकारियों के साथ ही बिहार सरकार के एक मंत्री की रुचि होने के कारण मैनेजमेंट का खेल भी जोरों शोरों से चल रहा है. बताया जा रहा है कि, जिन मनरेगा कर्मियों के नाम शिकायतकर्ताओं के रूप में सामने आए हैं उनके ऊपर भी खासा दबाव बनाया जा रहा है. बावजूद इसके भ्रष्टाचार के इस मामले की गहराई में जाने पर जो तथ्य सामने आ रहे हैं वह यह बताने के लिए काफी है कि, भ्रष्टाचार के इस कहानी की पटकथा वर्षों पूर्व लिखी गई थी जोकि धारावाहिक के रूप में लगातार चल रही है. भले ही चेहरे बदलते जा रहे हो लेकिन भ्रष्टाचार की यह कहानी नहीं बदल रही. दबी जुबान से कर्मी बताते हैं कि, यहाँ जो व्यक्ति मैनेजमेंट में सक्षम है वह सदैव दोष मुक्त करार दिया जाता रहा है.
सामने आई पीआरएस, कहा- पैसा नहीं देने पर किया बर्खास्त:
भ्रष्टाचार की यह कहानी काफी पुरानी है विभिन्न कारणों से यह बातें अब तक दबी हुई थी. हालांकि, अब लोग सामने आने लगे हैं. ऐसे ही एक मामले में बर्खास्त की गई पीआरओ ने मीडिया के समक्ष अपनी बातों को बताते हुए कहा है कि वर्ष 2017 में जब वह चौसा प्रखंड की डेहरी पंचायत में बतौर पंचायत रोजगार सेविका कार्यरत थी उस वक्त योजना संख्या 63 से लेकर 72 तक कई योजनाओं में भ्रष्टाचार की बात सामने आई थी. जिसको लेकर हो रही जांच के दौरान एक योजना (जिसमें पंचायत के ललन शर्मा के दरवाजे से नागेदरपुर मुख्य सड़क तरक्की पीसीसी ढलाई कराई गई थी) को लेकर अनियमितता मामले में छह लोगों को आरोपी बनाया गया था. जिसमें कार्यपालक अभियंता, पीओ, जेई, तकनीकी सहायक, लेखापाल तथा पीआरएस शामिल थे.
उन्होंने बताया कि, जांच के दौरान आश्चर्यजनक रूप से उनको छोड़कर बाकी सभी को क्लीन चिट दे दी गई थी. पीआरएस शीला देवी ने अपने बयान में बताया है कि, उनसे उस वक्त नौकरी बचाने के लिए पैसों की मांग की गई थी. पैसे देने में असमर्थता जताने पर उनके विरुद्ध कार्रवाई की गई वहीं अन्य आरोपियों को छोड़ दिया गया. बताया जा रहा है कि, उस वक्त तत्कालीन उप विकास आयुक्त मोबिन अली अंसारी के द्वारा मामले की जांच की गई थी. इसी बीच उनका स्थानांतरण हो गया.
डीडीसी ने किया जाँच से इनकार:
बकौल महिला पीआरएस उन्होंने तत्कालीन उप विकास आयुक्त अरविंद कुमार से भी मामले की पुनः जांच करने की बात कही ताकि, उन्हें न्याय मिल सके. उन्होंने डीडीसी से यह पूछा था कि, आखिर कैसे उनको छोड़ अन्य को दोष मुक्त कर दिया गया? हालांकि, डीडीसी ने पूर्व में कई गयी जांच को ही सही बताते हुए दोबारा जांच करने से इनकार कर दिया. यह मामला अब में मामला लोक शिकायत निवारण में चल रहा है.
पीआरएस ने बताया, डर से चुप हैं कर्मी:
पीआरएस ने बताया कि, भयादोहन का खेल लगातार चल रहा है. अपनी नौकरी बचाने के लिए कई लोग अब भी सामने नहीं आ रहे. क्योंकि, ऐसे कई मामले हैं जहाँ जिन लोगों ने भयादोहन का विरोध किया है तो उन पर कार्रवाई की गयी है.
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