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शिक्षा विभाग में हुए फर्जीवाड़े पर सख्त हुए डीइओ, डीपीओ से मांगा स्पष्टीकरण ..

शिक्षा पदाधिकारी ने कहा कि डीपीओ के इस कृत्य से लाखों रुपये सरकार राजस्व की क्षति हुई है. क्योंकि नियुक्ति की तिथि से अब तक श्वेतांश कुमार को नियमित शिक्षक का वेतनमान दिया गया है. ऐसे में उन्होंने एक सप्ताह के अंदर अपना स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया गया है. यदि वह ऐसा करने में सफल नहीं होते हैं तो उनके विरुद्ध विधि सम्मत कार्यवाही की चेतावनी भी जिला शिक्षा पदाधिकारी के द्वारा दी गई है.

- डुमरांव अनुमंडल से जुड़ा है मामला.
- नियमों को ताक पर रखकर किया गया है शिक्षक नियोजन

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: शिक्षा विभाग में एक बड़े फर्जीवाड़े के सामने आने के बाद जिला शिक्षा। पदाधिकारी ने जिला कार्यक्रम पदाधिकारी रामेश्वर सिंह से स्पष्टीकरण की मांग की है. उन्होंने कार्यक्रम पदाधिकारी को भेजे गए अपने पत्र में न्यायालय में शिक्षा विभाग का पक्ष नहीं रखने तथा इसके कारण एकपक्षीय फैसला हो जाने के संबंध में यह स्पष्टीकरण मांगा है.

अपने पत्र में जिला शिक्षा पदाधिकारी ने बताया है कि, डुमराँव के रहने वाले श्वेतांश कुमार की नियुक्ति डुमराँव अंचल के कोंही मध्य विद्यालय में बतौर शिक्षिका कार्यरत उनकी माता शैल देवी की मृत्यु 27.05.2003 में हो जाने के बाद के पश्चात उनके स्थान पर शिक्षक के रूप में की जाने की अनुशंसा अनुकंपा समिति द्वारा उसी वर्ष 12 दिसम्बर को की गई. हालांकि, प्रशिक्षित शिक्षक नहीं होने के कारण उनकी बहाली नहीं हो सकी. जिसके कारण मामला पुनः अनुकंपा समिति को वापस कर दिया गया. बाद में अनुकंपा समिति के द्वारा उक्त व्यक्ति की लिपिक पद पर बहाली हेतु अनुशंसा की गई. लिपिक पद भी रिक्त नहीं होने के कारण एक बार पुनः अनुकंपा समिति को मामला वापस चला गया, जिसके बाद अनुकंपा समिति के द्वारा एक बार फिर श्वेतांश कुमार को शिक्षक के रिक्त पद पर बहाल करने की अनुशंसा की गई. वहीं, प्रशिक्षित नहीं होने के कारण विभाग द्वारा उन्हें डुमराँव स्थित मध्य विद्यालय में नगर शिक्षक बनाया गया. 

इसी बीच श्वेतांश कुमार ने पटना उच्च न्यायालय में परिवाद दायर करते हुए यह अनुरोध किया कि, उन्हें नियोजित नहीं बल्कि नियमित शिक्षक बनाया जाए. यह उल्लेखनीय है कि, वर्ष 2006 के जुलाई माह में दिए गए एक 
फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि, इस तरह के मामलों में नियमित शिक्षकों की बहाली नहीं हो सकती. उधर, तृतीय संवर्ग में लिपिक पद के लिए स्थान रिक्त नहीं होने के कारण अनुकंपा समिति द्वारा मामले पर पुनः विचारण करते हुए सितंबर 2006 में शिक्षक पद पर नियुक्ति की बात कही गई. ऐसे में यह स्पष्ट है न्यायालय के आदेश के बाद अगर किसी का नियोजन शिक्षक के रूप में होता है तो वह नियमित नहीं बल्कि नियोजित ही होगा.


डीपीओ पर आरोप है कि, उन्होंने अपना पक्ष न्यायालय के सामने नहीं रखा तथा उच्चतम न्यायालय के इस आदेश को संबंधित न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाया. नतीजा यह हुआ कि न्यायालय के द्वारा श्वेतांश कुमार के पक्ष में एकतरफा फैसला दे दिया गया

जिला शिक्षा पदाधिकारी ने अपने पत्र में बताया है कि, यह नियुक्ति विभागीय नियमों के विरुद्ध होने के बावजूद कई बार मौखिक रूप से कहे जाने पर भी संशोधन के संदर्भ में डीपीओ द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया. शिक्षा पदाधिकारी ने कहा कि डीपीओ के इस कृत्य से लाखों रुपये सरकार राजस्व की क्षति हुई है. क्योंकि नियुक्ति की तिथि से अब तक श्वेतांश कुमार को नियमित शिक्षक का वेतनमान दिया गया है. ऐसे में उन्होंने एक सप्ताह के अंदर अपना स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया गया है. यदि वह ऐसा करने में सफल नहीं होते हैं तो उनके विरुद्ध विधि सम्मत कार्यवाही की चेतावनी भी जिला शिक्षा पदाधिकारी के द्वारा दी गई है.

नियुक्ति में हुआ है बड़ा लेन देन:

विभागीय सूत्रों की मानें तो शिक्षक नियुक्ति के इस मामले में रुपयों का बड़ा लेनदेन हुआ है. बताया यह भी जाता है कि, परिवाद दायर होने से लेकर फैसला आने तक हर तारीख पर नहीं उपस्थित होने की एवज में मोटी धनराशि सक्षम पदाधिकारी को दी जाती थी



















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