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Buxar Top News: सावधान ! घरेलू उपकरण पड़ेंगे मानव जीवन पर भारी ...


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: सूचना तकनीक के और जीवन को आसान बनाने वाले घरेलू उपकरण अब मानव जीवन पर भारी पड़ने जा रहे हैं। इलेक्ट्रानिक उपकरणों का जिस तेजी से इस्तेमाल बढ़ रहा है, उसी हिसाब से रसायनिक कचरे भी बढ़ रहे हैं। रसायनिक कचरों को सुरक्षित ठिकाने लगाने की व्यवस्था न होने से इसका प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है। सूचना का अधिकार कानून के तहत आरटीआई एक्टिविस्ट एवं युवा समाजसेवी अमित राय द्वारा मांगी गयी जानकारी में बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जो जानकारी दी है, उससे बेकार इलेक्ट्रानिक उत्पादों से होने वाले खतरे की गंभीरता का पता चलता है। हालांकि, इलेक्ट्रानिक कचरे को सुरक्षित ठिकाने लगाने के लिए वर्ष 2012 से हीं ई-अपशिष्ट नियमावली लागू हुई है। लेकिन, कानून के प्रति लोगों को जागरूक करने की पहल आज तक नहीं हुई।

दरअसल, बक्सर, आरा, सासाराम जैसे छोटे से जिले में 20 लाख से ज्यादा लोग मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं। मोबाइल की मार्केटिंग से जुड़े लोगो का कहना है कि हर दिन मात्र इन तीन जिले में रोजाना 1200-1500 से ज्यादा मोबाइल की बिक्री होती है। केवल मोबाइल की संख्या इतना है। वहीं, बड़ी संख्या में खराब मोबाइल कचरे में भी जाते हैं। जबकि इलेक्ट्रानिक कचरा की समस्या मोबाइल के अलावा इस्तेमाल के बाद बेकार हुए कंप्यूटर, टीवी, फ्रिज, इनवर्टर आदि से भी पैदा हो रही है।

क्या है खतरा

इलेक्ट्रानिक वस्तुओं में कैडमियम, लीड, पारा, आर्सेनिक व क्रोमियम आदि कुछ ऐसी जहरीली धातु व तत्व होते हैं जो पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। कृषि विज्ञान परिषद, बक्सर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के मुताबिक इन धातुओं का सुरक्षित निष्पादन नहीं होने से यह भूगर्भ जल व मिट्टी को खतरनाक ढंग से प्रभावित करते हैं। उनके मुताबिक हवा में मौजूद तत्वों के साथ रसायनिक क्रिया कर ये पर्यावरण के जरिये फसलों में पैठ बना लेते हैं और मानव शरीर तक पहुंच जाते हैं जो की काफी खतरनाक होता है।

जलाना और दबाना दोनों खतरनाक

एक पर्यावरणविद के मुताबिक ई-कचरे को दबाना और जलाना दोनों खतरनाक है। खुले में कचरे को जलाया जाये तो इससे निकलने वाली गैसें पर्यावरण को असंतुलित करती हैं। यदि, इसे जमींदोज किया जाये तो इससे भूगर्भ जल में जहर फैलता है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी घटती है। यानि इसे ना ही जलाया जा सकता है ना ही धरती में दबाया जा सकता है।
इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को जलाने से कार्सेनोजेन्स- डाईबेंजो पैरा डायोक्सिन (टीसीडीडी) एवं न्यूरोटॉक्सिन्स जैसी विषैली गैसें उत्पन्न होती हैं। इन गैसों से मानव शरीर में प्रजनन क्षमता, शारीरिक विकास एवं प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है। साथ ही हार्मोनल असंतुलन व कैंसर होने की संभावनायें बढ़ जाती हैं। इसके अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, तथा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन भी जनित होती है। जो वायुमण्डल व ओजोन परत के लिये बेहद हानिकारक है।

ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली

सूचना का अधिकार कानून के तहत आरटीआई कार्यकर्ता एवं बक्सर के युवा समाजसेवी अमित राय द्वारा मांगी गयी जानकारी में बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के वैज्ञानिक एस.एन.जायसवाल का कहना है कि राज्य में एक मई से ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली-2011 को लागू कर दिया गया है। इसके तहत इलेक्ट्रानिक कचरे के सुरक्षित संग्रह व निस्तारण की जवाबदेही उत्पाद बनाने वाली कंपनियों व एजेंसियों पर तय की गयी है। आम उपभोक्ताओं को भी ई-अपशिष्ट निर्धारित संग्रह केंद्र पर ही जमा करने होंगे।

जागरूकता का अभाव

अमित राय ने कहा कि यह कानून लागू होने के बावजूद इससे संबंधित जागरूकता लोगों में काफी कम है। कंपनियों को भी अपना उत्पाद बेचने से ही मतलब है। हाल में एक कंपनी ने अपनी सीडीएमए सेवा अचानक बंद कर दी और लाखों मोबाइल बेकार हो गए। परंतु कंपनी ने बेकार मोबाइल के सुरक्षित निष्तारण में कोई रूचि नहीं दिखाई। सरकार भी इसको लेकर गंभीर नहीं है, जबकि आगे आने वाले समय में यह काफी गंभीर समस्या बनने वाली है। नियमावली का अवलोकन भी किसी राजनेता या सक्षम पदाधिकारियों ने अबतक नहीं किया है। हालांकि, समय रहते इसके प्रति जागरूकता फैलाने व इस नियमावली को बेहतर ढंग से सुचारू किया जाय तो ई-कचरा से होने वाले खतरों से बचा जा सकता है। इससे संबंधित कानून को सख्ती से लागू कराने की पहल की जाय तभी यह संभव है।

अमित राय के एक शिकायत के आलोक में केंद्र सरकार द्वारा बताया गया है कि भारत में ई-कचरे के चिंताजनक रफ्तार से बढ़ने की बात को लेकर संसदीय समिति ने इसपर लगाम लगाने के लिए विधायी एवं प्रवर्तन तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की है। इसका मकसद भारत को विकसित देशों के ई-कचरा निपटारा करने की जगह बनने से रोका जा सकना है।

युवा समाजसेवी अमित राय ने बताया कि संसदीय समिति ने कहा कि ई-कचरा प्रबंधन एक बड़ी समस्या बन गया है और कई रिपोर्टो में इस बात के संकेत मिले हैं कि ई-कचरा विकसित देशों से एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों में भेजे जा रहे हैं और यह उपयोग किये गए उत्पाद के नाम पर भेजे जा रहे हैं ताकि इसके पुन:चक्रण (रिसाइकलिंग)करने के खर्च से बचा जा सके।

अमित राय, आरटीआई एक्टिविस्ट एवं युवा समाजसेवी, बक्सर

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