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Buxar Top news: तीन तलाक पर धर्म व धारा से उपर उठकर सोचे - आंदोलन |



बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: तीन तलाक के मुद्दे पर पूरे देश में एक वैचारिक क्रान्ति का उद्भव हो रहा है | समाज का हर बुद्धिजीवी इस कुरीति के ख़िलाफ़ खड़ा दिखाई पड़ रहा है | टीम आंदोलन के सक्रीय सदस्य मंटू कुमार "बबुआ जी" ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है इस मुद्दे पर हमें धर्म व धारा से ऊपर उठकर सोचना होगा |
उन्होंने कहा कि यह कोई मजहबी मुद्दा नहीं | ना ही यह कोई संवैधानिक मुद्दा है | यह तो मानवता की एक लड़ी है जो आज दस्तक दिए हर इंसान के सामने इंसाफ के लिए खड़ी है पर यहाँ कोई धर्म और धारा से ऊपर उठकर तो सोचे।
मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक देता हूँ। नसीर के मुँह से निकली हुई प्रत्येक वाक्य नशीदा के दिलों पर वज्र प्रहार करती है। नशीदा जिसने नसीर को पंद्रह वर्ष की अल्प आयु में ही अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दी थी आज तेईसवे वर्ष में ही कृशकाय सी मलिन चार बच्चों की माँ असमय श्री हीन वृद्धा दिखती हैं।
यह कोई धार्मिक प्रहार नहीं, सामाजिक कुरीतियों से परिपूर्ण इस देश में एक कुरीति तीन तलाक की प्रथा भी हैं। जिसे पुरूष प्रधान समाज, देवी स्वरूपा महिलाओं पर युगों-युगों से अपनी अदृश्य,अघोषित अहंकार को पोषित करने हेतु प्रताड़ना स्वरूप धार्मिक मान्यता या रिवाज के अनुरूप लादे हुए हैं।
न जाने कितने नशीदा,शाहबानो ही क्यों नीलू,नीलिमा भी इस कुरिति के शिकार होते आ रही हैं और अगर इस पर उचित ध्यान नहीं दिया गया तो और कितने नाम होंगे कहना नामुमकिन सा है । यह कही ना कही हमारे सामाजिक नींव को कमजोर कर रहा है डर तो यह हैं कि किसी दिन खोखला ही न कर दें।
मैं एक शादीशुदा व्यक्ति हूँ औरतों के मर्म को समझता हूँ क्या वह बेवजह तलाक जैसे खेल खेलने के लिए खिलौना हैं। तलाक औरतों के लिए अभिशाप से कम नहीं होता। भारतीय माहौल में जहाँ परिव्यक्ता समाज में लांक्षित औरतों की तरह देखी जाती हैं तथा यह उनके जीवन में अवसाद,आत्महत्या आदि को बढ़ावा देता है। कौन सा धर्म कहता है कि हम अपने माँ,बहनों को यह अवसर दे अपने निजी स्वार्थ के लिए। अगर ऐसा कोई धर्म कहता है तो हम नहीं मानते।
यहाँ तक कि माता-पिता के तलाक का असर उनके बच्चों के मानसिक व बौद्धिक विकास पर भी गहरा असर डालती हैं। बच्चे अपने को सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार ढाल नहीं पाते व अपने आप को अपरिग्रस्त समझते हैं जिसके कारण उनमें अकेलापन,अवसाद आदि दुर्गुणों का विकास होता हैं और अंततः इन सभी से बचने हेतु वह नशा व अपराध की ओर उन्मुख होते हैं। अब अगर इसे रोकने में कोई धारा(संविधान) भी बीच में रोडा बन रहा तो नहीं चाहिए ऐसा संविधान जो हमारे देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करें।
आज हर सरकार इस बात को समझते हुए भी कोई कड़ा फैसला नहीं ले पा रही है | इसका सीधा कारण सत्ता की मोह है | वरना गलत चीजों में किसी के विचार की क्या जरूरत। सच बात तो यह हैं कि कोई इसपर धार्मिक तो कोई राजनीतिक रोटी सेक रहा।
पर यकीन मानिए जब तक राजनीति रहेगी कभी सर्वांगीण विकास नहीं होगा और यह जब धर्म के ठेकेदार रहेंगे कभी आधुनिक समय में समानता नहीं ला सकता।
आज हम 21वीं सदी में हैं...हम आधुनिक हैं....नयी सोच की बात करते हैं...पर एक सच की की लड़ाई के लिए आगे नहीं आ सकते !

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