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Buxar Top News: परिस्थितयां व सरकार बने राहु और केतु, 30 लाख से अधिक किसान हर वर्ष कर रहे हैं पलायन ...




बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: उद्योग-धंधों से लगभग विहीन हो चुके बिहार में खेती-बाड़ी को एक तरफ बाढ़ और दूसरी तरफ सूखे ने राहु और केतु की तरह ग्रसित कर रखा है।
बाढ़ की विनाशलीला हो या सूखे का संकट, भूमि-संघर्ष हो या जाति-संघर्ष, जल प्रबंधन की विफलता हो या अवैध भूमि-कब्ज़ा-हर हाल में मार पड़ती है किसानों पर और माला-माल होते जा रहे हैं राजनीतिज्ञ।

अमित राय को आरटीआई के तहत उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक दो दशक पहले बिहार से प्रतिवर्ष लगभग पाँच लाख कृषि मजदूर रोजी-रोटी के लिए अन्य राज्यों में जाते थे लेकिन विगत पन्द्रह वर्षों के दौरान साल भर में 30-35 लाख से भी ज़्यादा खेत मजदूर पलायन कर रहे है।

किसानों के समस्याओं से चिंतित आरटीआई एक्टिविस्ट अमित राय ने कहा कि, खेती पर निर्भर आबादी के लिए जीविका के वैकल्पिक साधन की जरूरत है। भूमि उपयोग के पैटर्न में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हैं जबकि कृषि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता गया है। आबादी के अनुपात में कृषि भूमि नहीं बढ़ सकती लेकिन कृषि भूमि पर निर्भरता को कम करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती है, इसकी बड़ी जरूरत है।

दुनिया में पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है, उसके प्रभाव जलवायु परिवर्तन के रूप में किसी ने नहीं किए हैं। इन मामलों के विशेषज्ञ वैज्ञानिक मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन से अगले 5-10 सालों में कृषि की समस्या विकराल हो सकती है। यकीनन इस जलवायु परिवर्तन यानी कि कुदरती कहर से कृषक अछूता नहीं रहेगा और इसका मतलब है किसानों के लिए कृषि की चुनौतियां और बढ़ेंगी। कृषि की प्रकृति पर निर्भरता से जुड़ी समस्याएं पहले से कायम हैं।

खेतों में मुरझाती उम्मीदें राजनीति की फसल तो पका सकती हैं लेकिन भूखे पेट को भरने के लिए न अन्न है और न पानी। बिहार में किसानों की मदद करने के लिए नितीश कुमार की योजना सीधे ट्रांसफर पर आधारित है। मगर क्या योजना बिहार में काम कर भी रही है? विगत वर्षों राज्य के लाखों किसान की सहायता के लिए सरकार ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम शुरू की जिसमे लाखों किसानों ने पंजीकरण करवाया है लेकिन उन सभी किसानो को विशिष्ट पहचान-पत्र अबतक नही उपलब्ध कराया जा सका। इस योजना को कृषि क्षेत्र की दो समस्याओं से निपटने के लिए बनाया गया। दलाल या बिचैलिए से छुटकारा दिलाना तथा छोटे-बड़े किसानों को बराबर का फायदा देना।
हम प्राकृतिक आपदाओं को नहीं रोक सकते, केवल हम कृषि पर होने वाले प्रभावों को कम कर सकते हैं। सभी प्रकार की अनाज और सरकारी पैकिंग में कम से कम 20 प्रतिशत छूट का इस्तेमाल करना अनिवार्य कर दिया गया है ताकि इससे जुड़े हुए किसानों की आर्थिक स्थिति सही रह सके। लेकिन अबतक धरातल पर इसका विशेष प्रभाव नही दिख रहा।

वास्तविकता क्या है कि सरकारें ऊपर से नीतियां बनाकर सोचती हैं कि ये नीतियां स्थानीय स्तर पर भी प्रभावी होंगी। वे यह नहीं सोचती हैं कि हर समस्या की अपनी स्थानीयता होती है और इसी स्थानीयता से उसके समाधान के लिए एक दृष्टि खोजी जा सकती है।

आरटीआई एक्टिविस्ट अमित राय ने कहा कि सरकार कृषि शिक्षा और अनुसंधान को सर्वाधिक प्राथमिकता दे ताकि कृषि को लाभदायक पेशा बनाया जा सके। नई प्रौद्योगिकी के माध्यम से कृषि लागत को कम से कम कर युवाओं में कृषि के प्रति आकर्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है। कृषि चक्रव्यूह में फंसी है और उसे इससे निकालने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, परंपरागत कृषि, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसे कार्यक्रम पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए। मृदा स्वास्थ्य कार्ड तो अविलंब प्रत्येक किसानों को उपलब्ध कराना चाहिये।
अंत में सवाल यह है कि आखिर सरकार किसानों के प्रति बनाये अपने नीतियों को धरातल पर प्रभावी क्यों नBही बना रही। आखिर किसान कब तक आत्महत्या करे या यहाँ से पलायन करते रहें। किसानों को उनका वाजिब हक क्यों नही मिल पाता। यह काफी गंभीर विमर्श करने योग्य विषय है |

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