Buxar Top News: "ओ" से "ओखली" की तरह सिर्फ यादों में रह गया है मेरा बक्सर ...
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: बचपन से जवानी और उसके बाद की यात्रा में कई बदलाव न सिर्फ किसी व्यक्ति बल्कि किसी शहर पर भी स्पष्ट रूप से अपना प्रभाव छोड़ते हैं | अपना बक्सर भी इन बदलावों से अछूता नहीं है बक्सर के अतीत में कुछ ऐसी बातें गुम हो गयी हैं जिनकी यादें ही बची हैं | इन्ही यादों को पुनः जीवंत कर रहे हैं बक्सर के ही एक नागरिक कौशलेंद्र ओझा ...
"बक्सर, मेरे इस शहर में कई चीज़ें भूले बिसरे गीत सदृश्य हो गए हैं ।
इसी ज़ीवन ने यहाँ ओखल ढेंका जुआठ सब देखे लेकिन सब गुम सा हो गये। बेटी को पढ़ाते वक्त ओ से "ओखली" की ही याद आती है और मै समझा नहीं पाता कि ओखली क्या है?
कई पेड़ इस शहर से गायब हो गए ,मुनीब चौक का नीम का पेड़ अचानक रूठ कर लापता हो गया जबकि उसके नीचे मै बचपन में कई अख़बारों को मुफ्त में पढ़ा करता था।
कई पत्रकार जो सृजनशील रहा करते थे आज गुम सा हो गये। आर्यावर्त में लिखने वाले कमला प्रसाद मिश्र विप्र, आज में लिखने वाले रामेश्वर प्रसाद वर्मा, नवभारत टाइम्स में लिखने वाले साहित्यकार कुमार नयन जगरम प्रकाशित करने वाले विजयानंद तिवारी जैसे लोग अब पत्रकारिता में नहीं रहे,पत्रकारिता बेनूर हो गयी है।
राजनीति में प्रो के के तिवारी, बिंदेश्वरी दुबे, ए पी शर्मा, विजयानंद भारती ऋषिकेश तिवारी, ज्योति प्रकाश आदि के टक्कर के पढ़े लिखे राजनेता भी नहीं रहे नहीं ऐसे पढ़े लिखे कार्यकर्त्ता अब मिल रहे हैं, मुझे याद है कि प्रो तिवारी के समय उनका प्रेस रिलीज प्रो के डी तिवारी और प्रो बलराज ठाकुर घर पर आये थे लेकिन ऐसे कार्यकर्त्ता अब देखने को मिलते तक नहीं है।
कला संस्कृति में हारमोनियम पं ऋषीश्वर तिवारी बजाते थे और दादरा और ठुमरी व राग भैरवी का अंतर गाकर समझाते थे अब ठुमरी समझाने और समझने वाला कोई नहीं है इस शहर में।
अलका, कृष्णा यहाँ केवल नाम ही नहीं हैं छविगृहों के प्रतीक थे तब दुर्गा और कुंवर विजय जैसे छविगृह बने तक नहीं थे लेकिन अलका अलका याज्ञनिक की तरह गुम हो गया और कृष्णा का नामोनिशान मिट गया जहाँ मै बचपन में "नदिया के पार" और "क्रांति" देखी थी |
कई विभाग भी इस ज़िले में लगता नहीं है कि अब हैं या नहीं हैं?
मेरे समय में एक बैंक भूमि विकास बैंक जो हर प्रखंड में जिला मुख्यालय में दिखता था,अब अदृश्य हो गया है।
चकबंदी कार्यालय, वयस्क और अनौपचारिक शिक्षा का कार्यालय इस शहर में अब दिखता तक नहीं मानो उनकी अब ज़रूरत ही नहीं रही हो।
इस शहर में प्रो एस के मिश्र, प्रो धनेश दत्त सिन्हा, प्रो आर के मिश्र आदि जैसे गुरु मिलते थे अब वैसे गुरु खोजने पर भी नहीं मिल पा रहे है।
चिकित्सकों में भी डॉ राम नगीना राय, डॉ श्रीकांत पांडेय डॉ अनारकली जैसे चिकित्सक इस शहर में थे वैसे चिकित्सकों की कमी आज भी खल रही हैं।
संतों में खाकी बाबा, त्रिदंडी स्वामी, मामा जी जैसे संत इस शहर को आध्यात्मिक ऊर्जा से लबरेज़ करते थे,ऐसे संत भी नहीं रहे अब घोघा बसंत आ गए हैं।
मेरे इस शहर में सब कुछ बदला लेकिन माँ गंगा अभी भी अपनी अविरलता बनाये रखी है वैसे इस शहर में ज़िन्दगी की अविरलता बनी हुई है लेकिन जो कुछ शहर खोया वो आज भी मयस्सर नहीं हैं।
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