Happy Holi: होली का मतलब ये तो नहीं ....
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: राग-रंग का यह
लोकप्रिय पर्व होली वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके
प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी
इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए
जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं।
होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।
होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।
असल में होली बुराइयों के विरुद्ध उठा एक
प्रयत्न है, इसी से जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है,
औरों
के दुख-दर्द को बाँटा जाता है, बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता
है। आनंद और उल्लास के इस सबसे मुखर त्योहार को हमने कहाँ-से-कहाँ लाकर खड़ा कर
दिया है। कभी होली के चंग की हुंकार से जहाँ मन के रंजिश की गाँठें खुलती थीं,
दूरियाँ
सिमटती थीं वहाँ आज होली के हुड़दंग, अश्लील हरकतों और गंदे तथा हानिकारक
पदार्थों के प्रयोग से भयाक्रांत डरे सहमे लोगों के मनों में होली का वास्तविक
अर्थ गुम हो रहा है। होली के मोहक रंगों की फुहार से जहाँ प्यार, स्नेह
और अपनत्व बिखरता था आज वहीं खतरनाक केमिकल, गुलाल और नकली
रंगों से अनेक बीमारियाँ बढ़ रही हैं और मनों की दूरियाँ भी।
जर्मनी, रोम आदि देशों
में भी इस तरह के मिलते-जुलते पर्व मनाए जाते हैं। गोवा में मनाया जाने वाला ‘कार्निवाल'
भी
इसी तरह का पर्व है, जो रंगों और जीवन के बहुरूपीयपन के माध्यम से
मनुष्य के जीवन के कम से कम एक दिन को आनंद से भर देता है। होली रंग, अबीर
और गुलाल का पर्व है। परंतु समय बदलने के साथ ही होली के मूल उद्देश्य और परंपरा
को विस्मृत कर शालीनता का उल्लंघन करने की मनोवृत्ति बढ़ती जा रही है। प्रेम और
सद्भाव के इस पर्व को कुछ लोग कीचड़, जहरीले रासायनिक रंग आदि के माध्यम से
मनाते हुए नहीं हिचकते। यही कारण है कि आज के समाज में कई ऐसे लोग हैं जो होली के
दिन स्वयं को एक कमरे में बंद कर लेना उचित समझते हैं।
सही अर्थों में होली का मतलब शालीनता का
उल्लंघन करना नहीं है। परंतु पश्चिमी संस्कृति की दासता को आदर्श मानने वाली नई
पीढ़ी प्रचलित परंपराओं को विकृत करने में नहीं हिचकती। होली के अवसर पर छेड़खानी,
मारपीट,
मादक
पदार्थों का सेवन, उच्छंृखलता आदि के जरिए शालीनता की हदों को पार
कर दिया जाता है। आवश्यकता है कि होली के वास्तविक उद्देश्य को आत्मसात किया जाए
और उसी के आधार पर इसे मनाया जाए। होली का पर्व भेदभाव को भूलने का संदेश देता है,
साथ
ही यह मानवीय संबंधों में समरसता का विकास करता है। होली का पर्व शालीनता के साथ
मनाते हुए इसके कल्याणकारी संदेश को व्यक्तिगत जीवन में चरितार्थ किया जाए,
तभी
पर्व का मनाया जाना सार्थक कहलाएगा।
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