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...तो कमलनाथ कांग्रेस की लुटिया डुबोना चाह रहे हैं?


कहते हैं चोर, चोरी छोड़ देता है लेकिन सीनाजोरी नहीं छोड़ता!

यह बात कुछ नेताओं के संदर्भ वह बेझिझक कही जा सकती है. पिछले दिनों हिंदी भाषी तीन राज्यों छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा की हार हुई. छत्तीसगढ़ में जहाँ कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला तो राजस्थान में बहुमत से कुछ दूर रहे कांग्रेस निर्दलीय और सपा-बसपा के समर्थन से सरकार बनाने में सफल रही. बात करें एमपी की तो मध्यप्रदेश में मामला लगभग बराबरी पर छूटा.

भाजपा से मात्र पांच सीटे आगे रहने के साथ जैसे तैसे मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के मुखिया बने कमलनाथ ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है.
1984 के सिख दंगे में अपनी संदिग्ध भूमिका के कारण लोगों का वह विरोध तो झेल ही रहे थे, साल की शुरुआत में ही उन्होंने 'वंदे मातरम' गाने पर प्रतिबंध लगाकर तुष्टीकरण की पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है.

दरअसल कमलनाथ ने हर महीने की पहली तारीख को मंत्रालय में गाए जाने वाले वंदे मातरम को बंद करने का फैसला लिया है. बताते चलें कि प्रदेश की शिवराज सरकार ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. इसके अनुसार मंत्रालय के सभी कर्मचारी महीने की पहली तारीख को परिसर में इकट्ठा होकर एकसाथ राष्ट्रगीत मिलकर 'वंदे मातरम' गान करते थे. आखिर संविधान की रक्षा की दुहाई देने वाली कांग्रेस शासित एक राज्य के मुख्यमंत्री 'राष्ट्रगीत - वंदे मातरम' पर रोक लगाकर क्या साबित करना चाहते हैं?

समझना मुश्किल है कि कमलनाथ अखिर इससे क्या हासिल करना चाहते हैं?
बात यहां सिर्फ मध्यप्रदेश की ही नहीं है बल्कि आज के समय में खबरें तेजी से वायरल होती है और उसका असर राष्ट्रव्यापी होता है.

कई हलकों में माना जा रहा है कि कमलनाथ संभवतः चुनाव पूर्व किसी मीटिंग में किए गए अपने उस वादे को पूरा कर रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि 'आरएसएस को चुनाव के बाद देख लेंगे.' 

पर शायद कमलनाथ सहित दूसरे कांग्रेसी नेता भूल जाते हैं कि वंदे मातरम का भाव और उसकी महत्ता आरएसएस और कांग्रेस से कहीं बहुत ऊपर और सम्माननीय है. ज्यादा नहीं मात्र 5 साल पहले 2014 की अगर कांग्रेस एनालिसिस करती है तो वह समझ जाएगी कि 'तुष्टिकरण' उसके लिए कितना घातक हुआ है. ऐसे में वंदे मातरम गायन प्रक्रिया को बाधित करना समझ से परे है. हालाँकि, बाद में बवाल होने पर कमलनाथ ने सफाई दी कि वह 'नए तरीके' से वंदे मातरम् का गायन शुरू करेंगे!
अरे कमलनाथ जी! क्या वंदे मातरम् के शब्द बदलेंगे या फिर सुर?
आखिर राष्ट्रगीत को गाने का 'नया तरीका' लगाने से आपका क्या मतलब है.

बहरहाल एक दूसरे विवादित फैसले में कमलनाथ ने आपातकाल के सेनानियों को मध्यप्रदेश में जो पेंशन दी जा रही थी उसे रोककर इमरजेंसी को एक तरह से जायज ठहराने की कोशिश भी की है. कांग्रेस के ऊपर 'आपातकाल का दाग' हमेशा से लगा रहा है और कमलनाथ सहित सहित कोई भी कांग्रेसी इस को लेकर सहज नहीं हो सकता लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि आपातकाल जायज था? खासकर तब जब पुराने बुजुर्ग लोगों ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए इंदिरा के सामने खड़े होने का साहस किया था उन्हें अगर पिछली सरकार कोई सुविधा दे रही है तो केवल पार्टी के नाम पर उनकी सुविधा छीन लेना कहां का इंसाफ है?

इतना ही नहीं कमलनाथ ने कई पेंशन लाभार्थियों को 'गुंडे-बदमाश' कहने में ज़रा भी संकोच नहीं किया तो काग्रेंस के प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता ने इस सुविधा को रोकने को यह कहते हुए जस्टिफाई किया है कि आपातकाल में जेल गए लोगों ने माफ़ी मांगी थी, इसका मतलब उन्होंने अपना अपराध क़ुबूल किया था, इसलिए वह पेंशन के हकदार नहीं है. मतलब... कुछ... भी...!!

विचित्र बात है कि बहुमत के बॉर्डर पर खड़ी कांग्रेस को अनाप-शनाप फैसले लेने में आखिर क्या आनंद प्राप्त हो रहा है? 2019 में तमाम कांग्रेसी राहुल गाँधी को पीएम के रूप में देखना चाहते हैं तो क्या वह ऐसे ही अपने नेता को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने का प्रयत्न करेंगे? कांग्रेस पार्टी को समझना चाहिए कि इस तरह की हरकतों से वह अपना स्थान वोटर्स में मजबूत करने की बजाय कमजोर ही करेगी और इसके लिए अब उसे ज्यादा लम्बा इंतज़ार भी नहीं करना पड़ेगा. आखिर 2019 के आम चुनाव में कुछ समय ही तो शेष है.

मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
















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