Header Ads

विचार: भारतीय राजनीति के असामाजिक नेता ..


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: किसी भी दल, समूह, समाज और देश का विकास एक सकारात्मक नीति और नेता के बिना सम्भव नही है. जनता की परेशानियां उनकी जरूरतों और हक की मांग को सरकार से पूरा करने-करवाने के वादे के साथ हमारे समाज से ही कोई व्यक्ति अपनी आवाज को बुलन्द करता है और कुछ लोगों की समर्थन प्राप्त कर के वही व्यक्ति एक नेता के रूप में उभर कर सामने आता है, लेकिन आधुनिक भारतीय राजनीति में आपको अनेकों ऐसे नेता मिल जाएंगे, जिन्होंने पूरी राजनीति को ही अपनी महत्वकांक्षी एवं नकारात्मक सोच से राजनीति शब्द को गन्दा कर के रख दिया है. जिसके फलस्वरूप अच्छे स्वभाव के आम नागरिकों ने राजनीति नाम से ही घृणा करना शुरू कर दिया है. 

हम बात कर रहे हैं आजकल की राजनीति करने वाले नेताओ के सन्दर्भ में, जो कि समाजहित, प्रान्तहित, देशहित को महत्व न देकर, अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए राजनीति की सहारा ले रहे हैं, जो की समाज के लिए बहुत ही चिंताजनक विषय बन चुका है.

आज के नेता अपनी राजनीति से समाज के भाईचारे को समाप्त करने का कार्य कर रहे हैं. इस विषय पर पहले भी कई सामाजिक सोच रखने वाले लोग अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं, क्योंकि इस समय देशभर में सर्वत्र देखा जा रहा है कि कोई भी नेता सर्वप्रथम जातिवाद,परिवारवाद को असली मुद्दा बना कर राजनीति कर रहे हैं और इसी धर्म-सम्प्रदाय की लड़ाई में विकास की मुद्दा सबसे पीछे छूटा जा रहा है. हर कोई समाज-देश से ज्यादा मूल्यवान अपनी और धर्म को ही समझ रहे हैं. आज जब भी टेलीविजन, समाचार पत्र में बहस के दौरान पत्रकारों द्वारा  नेताओं से जनता की मूल परेशानियां और विकास के मसले पर सवाल किया जाता है तो ये लोग प्रश्न की सीधे जवाब न देकर उस मुद्दे को जाति,धर्म और सम्प्रदाय पर ले कर चले जाते हैं.

जब देश की रक्षा के लिए भारतीय सेना है ही फिर ये नेता स्वयं को धर्म के रक्षक कह कर जनता की ठेकेदार बन बैठते हैं.  राजनीति करना कोई बुरी बात नही है, परन्तु आज के समय में राजनीति का पूरा अर्थ ही बदला जा चुका है.

वर्तमान में जो भी व्यक्ति राजनीति में करियर बनाने निकलते हैं और यदि वे  सामान्य जाति से आते हैं, तो पिछडे जातियों के मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने आप को सामान्य जाति में जन्म लेने से स्वयं को श्रापित कहने लगते हैं. ताकि पिछड़े वर्ग का मत उन्हें मिल सके. वहीँ कोई पिछड़े वर्ग का नेता हो तो वो भी समाज को बाटने में कोई कसर नही छोड़ते. जनता को विकास की मुद्दा से भटका कर कथित रूप से पूर्व में किये गये सामान्य जातियों द्वारा पिछडो पर अत्याचार को बार-बार अपने बयानों में घसीट-घसीट कर हमारे समाज को बाटने और तोड़ने का काम कर रहे है, इन्ही सभी अमर्यादित बयानों से भोली-भाली जनता को भड़काया जा रहा है और नेतागण सत्ता की रोटियां सेंकने में काफी हद तक अपने मंसूबो में कामयाब हो जा रहे है. जिससे आज भी लोग न चाहते हुए भी आपसी भाईचारे को समाप्त कर के दंगा-फसाद का शिकार बन जाते हैं. जिसका सीधा फायदा उन असामाजिक नेताओ को होता है. इसी प्रकार के नेताओ द्वारा जनता में जाति-धर्म के नाम पर जहर घोला जा रहा है. वहीं भ्रष्ट असमाजिक नेता लोकतंत्र का चोला ओढ़े अपने गलत नीतियों से संविधान के कानूनों का उलंघन कर लोकतंत्र की गला घोट रहे हैं. जिससे आज हमारा समाज और देश जाति-धर्म के नाम पर खण्डित होता जा रहा है.

नेता बन जाना आसान है किन्तु नेता बनकर बगैर जाति-सम्प्रदाय का नाम लिए राजनीति धर्म की पालन करना नामुमकिन बन गया है. कहा जाता है कि नेता की कोई जाति नही होती. कोई धर्म नही होता बल्कि नेता वो होता है जो बिखरे पड़े समाज को एकत्रित करे, नेता वो है जो हर जाति का सम्मान करे, हर धर्म को अपना धर्म समझे. नेता वो है जो निस्वार्थ भावना से समाज के हर वर्ग को साथ लेकर पूरे जनमानस का नेतृत्व करे. वही व्यक्ति देश कल्याण के लिए नेता बनने योग्य है.

गुलशन सिंह
छात्र, स्नातक प्रथम वर्ष,
डीके कॉलेज, डुमराँव










No comments