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उपभोक्ता अधिकार दिवस पर विशेष: न्याय में विश्वास दिलाने में सफल साबित नहीं हो रहा कंज्यूमर फोरम ..

सुरक्षा का अधिकार जिसका मतलब होता है वस्तुओं और सेवाओं के विपणन के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करना. इसके लिए गुणवत्ता चिन्ह निर्धारित किए गए हैं जैसे आईएसआई, एग मार्क इत्यादि. ये चिन्ह किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता की गारंटी देते है

- आनन-फानन में किया जाता है निष्पादन नहीं मिल पाता सही न्याय.

- नियमित नहीं पहुंच पाते हैं सदस्य.



बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: समाज में रहने वाला हर व्यक्ति उपभोक्ताओं की श्रेणी में आता है. उत्पादों को खरीदते समय उपभोक्ता कई बार ठगी के शिकार हो जाते हैं. कई बार तो  उपभोक्ता इस तरह के मामलों में चुप्पी साध लेते हैं, परंतु कई बार वह न्याय का दरवाजा खटखटा ते हैं. ऐसे ही मामलों में न्याय दिलाने के लिए सरकार द्वारा उपभोक्ता फोरम की स्थापना की गयी है. बक्सर में 25 मार्च 1994 को इसी सोच के साथ व्यवहार न्यायालय परिसर के समीप उपभोक्ता न्यायालय की स्थापना की गई थी. अब इसे जागरूकता का अभाव कहे या कुछ और, तकरीबन 24 वर्ष बीत जाने के बाद भी न्यायालय में केवल 24 सौ मामले में दर्ज कराए गए हैं। इस हिसाब से प्रति वर्ष औसतन केवल 100 मामले हैं यहां दर्ज कराए जा सके हैं.

ना वकील रखने की चिंता ना फीस देने की झंझट

उपभोक्ता फोरम की व्यवस्था में उपभोक्ताओं को अपना पक्ष रखने के लिए किसी अधिवक्ता की आवश्यकता नहीं होती है. साथ ही साथ 5 लाख रुपये तक के मामलों में बिना किसी शुल्क के अपना वाद न्यायालय में लाने की छूट दी जाती है. जानकारी देते हुए न्यायालय की सदस्या सीमा सिंह ने बताया 5 लाख से 10 तक के मामलों पर 200 रुपए का शुल्क चालान के माध्यम से सरकारी खाते में जमा कराना होता है. तत्पश्चात मामले की सुनवाई शुरू हो जाती है.

2400 मामलों में 2135 हुए हैं निष्पादित:

आंकड़े बताते हैं कि उपभोक्ता न्यायालय में अब तक 24 सौ मामले दर्ज कराए गए, जिनमें तकरीबन 22 सौ मामले निष्पादित किए जा चुके हैं. हालांकि, काएय मामले अभी भी लंबित हैं, जिनकी सुनवाई की जा रही है. बताया जाता है कि उपभोक्ता मामलों को लेकर अभी भी जागरूकता का आभाव है. उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की जानकारी होनी आवश्यक है.  बताया जाता है कि हर माह लगभग सात-आठ मामले न्यायालय में आते हैं.

न्याय में विलंब के कारण न्यायालय में जाने से कतराते हैं उपभोक्ता:

अधिवक्ता दयासागर पांडेय के मुताबिक न्याय मिलने में देरी होने के कारण उपभोक्ता व्यवहार न्यायालय में जाने से कतराते हैं. उन्होंने कहा कि न्यायालय में पदस्थापित सदस्य तथा अध्यक्ष की मनमानी के कारण न्याय मिलने में विलंब होता है, जिसके कारण उपभोक्ता न्यायालय में जाने से कतराते हैं. उन्होंने बताया अध्यक्ष राधेश्याम सिंह पटना साहिब के मूल निवासी हैं. वहीं एक सदस्य नंदकुमार सिंह भी बिहटा से आते हैं. यह लोग केवल शुक्रवार और मंगलवार को न्यायालय में उपस्थित हो पाते हैं जिसके कारण सुनवाई में बाधा पहुंचती है.


वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने बताया कि, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 उपभोक्ताओं को वो अधिकार देता है जो उन्हे किसी तरह की जालसाज़ी या धोखाधड़ी से बचा सकें. संविधान की धारा 14 से 19 बीच आपको ये अधिकार उपलब्ध कराता है.

ये हैं उपभोक्ताओं के 6 अधिकार:

1.सुरक्षा का अधिकार
उपभोक्ताओं के अधिकारों में सबसे पहले आता है सुरक्षा का अधिकार जिसका मतलब होता है वस्तुओं और सेवाओं के विपणन के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करना. इसके लिए गुणवत्ता चिन्ह निर्धारित किए गए हैं जैसे आईएसआई, एग मार्क इत्यादि. ये चिन्ह किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता की गारंटी देते है.

2.सूचना पाने का अधिकार:

दूसरा है सूचना का अधिकार जिसका मतलब है कि उपभोक्ता को किसी भी वस्तु की मात्रा, गुणवत्ता, शक्ति, शुद्धता, स्तर और मूल्य के बारे में जानकारी पाने का पूरा अधिकार है. विक्रेता इससे इंकार नहीं कर सकता है.

3.चुनने का अधिकार:

तीसरा है चुनने का अधिकार. यानि उपभोक्ता को पूरा अधिकार है कि वो किसी भी पदार्थ के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हो और उसके बाद अपने विवेक से उसे चुन सके. यानि उपभोक्ता को पूरी छूट है कि वो वही खरीदे जो वो खरीदना चाहता है.


4. सुनवाई का अधिकार
चौथा है सुनवाई का अधिकार. जिसका मतलब है कि अगर उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद या पदार्थ से परेशानी है तो उसकी बातो को ध्यान से सुना जाए.

5.विवाद सुलझाने का अधिकार
विवाद सुलझाने का अधिकार भी उपभोक्ता को प्राप्त है. जिसका मतलब होता है उपभोक्ता की शिकायतों का उचित निपटारा जल्द से जल्द हो.


6.उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
इसका अर्थ है कि उपभोक्ता को ये अधिकार है कि वो उपभोक्ता संरक्षण से जुड़ी हर जानकारी अर्जित कर सकता है. ताकि शोषण से बच सके.

-दुनिया में सबसे पहले 15 मार्च 1962 को उपभोक्ता संरक्षण पर पेश किए गए विधेयक पर अनुमोदन तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने दिया था. इस विधेयक के चार खास प्रावधान थे - उपभोक्ता सुरक्षा के अधि‍कार, सूचना प्राप्त करने का अधि‍कार, उपभोक्ता को चुनाव करने का अधि‍कार और सुनवाई का अधि‍कार.
-भारत में उपभोक्ता संरक्षण से जुड़े आंदोलन की शुरूआत 1966 में मुंबई से हुई.
-पहली बार अधिकारिक रूप से अंतराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस 15 मा्र्च, 1983 को मना जिसके बाद से हर साल इसी तारीख को ये दिन मनाया जाने लगा.














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