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कहीं इतिहास ना बन जाये गौरैया .. विश्व गौरैया दिवस पर विशेष

गौरैयों के संरक्षण के प्रति समाज के लोगों में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि, यदि अब इनकी देख-भाल के लिए समाज एवं सरकार के तरफ से कोई ठोस कदम नही उठाया गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए पुस्तको में लिखा रहेगा. "एक पक्षी थी गौरैया."

- बाग-बगीचों से लेकर छत के मुंडेरों कभी चहचहाती यह चिड़िया.

- सिमरी के धनंजय पांडेय संरक्षण व संवर्धन को कर रहे प्रयास.



बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: गौरैया पक्षी का धीरे-धीरे विलुप्त होना बहुत ही चिन्ता का विषय है. जिस चिड़िया की चहचहाट से घर-आंगन गुंजयमान रहा करता था. आज उसकी कमी लोगों को महसूस होने लगा है. बचपन से हम सब जिन गौरैया को अपने घरेलू पक्षी के रूप में देखा करते थे, यह चिड़िया समय के साथ कहाँ अदृश्य हो रही है? एक समय था जब बाग-बगीचे से लेकर घर के आँगन और छतों पर इस पक्षी की कतारें लगी रहती थी, आज इसकी एक झलक कहीं-कहीं देखने को मिल रही है.


पूरी दुनिया में हर वर्ष 20 मार्च को "विश्व गौरैया दिवस" के रूप में मनाया जाता है लेकिन क्या आप जानते है कि इस दिन विश्व गौरैया दिवस को मनाने का मूल तात्पर्य क्या है? दरअसल, आए दिन इन छोटी एवं प्यारी गौरैयों की जनसँख्या में तेजी से कमी आ रही है. आपको बता दें 25 ग्राम की वजन वाली इन पक्षियों के संरक्षण हेतु लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से 2010 से हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जा रहा है. गौरैयों के संरक्षण के प्रति समाज के लोगों में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि, यदि अब इनकी देख-भाल के लिए समाज एवं सरकार के तरफ से कोई ठोस कदम नही उठाया गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए पुस्तको में लिखा रहेगा. "एक पक्षी थी गौरैया." जिसके विषय में लोग जान तो पाएंगे किन्तु अपनी आँखों से गौरैया जैसी पक्षी को देखने की चाहत अधूरा सपना बन कर रह जाएंगी.

एक वाक्य में कहें तो यह बात सामने आती है कि  समाज में सभी लोग गौरैया की अनदेखी कर रहे है. हमारे अपने जिले में भी अनेक लोग हैं जिन्हें पर्यावरण जुड़ी चीजों के विलुप्त एवं बर्बाद होने की चिन्ता लगी रहती है. प्रकृति प्रेमी  उन्हें बचाने के लिए  अपने स्तर से हर संभव प्रयास करते हैं. ऐसे ही व्यक्तियों में से एक व्यक्ति हैं धनंजय पाण्डेय जो कि जिले के सिमरी गाँव के बकुलहा पट्टी के निवासी हैं. उन्होंने गौरैयों की संरक्षण पर अपने विचार व्यक्त किए. वह बताते हैं कि ये पक्षी ध्वनि प्रदूषण एवं दूरसंचार उपकरणों से निकलने वाली हानिकारक तरंगो से सबसे अधिक प्रभावित हैं. जिसकी वजह से इनकी संख्या में निरंतर कमी आ रही है. धनंजय जी बताते हैं कि गौरैयों की देखभाल उनका परिवार हमेशा से करता आ रहा है. उन्होंने अपने यहाँ इनके दाने-पानी का उचित प्रबन्ध किये हुए है. जिसके  परिणाम स्वरूप इनके घरो अगल-बगल हजारो की संख्या में गौरैया हर वक्त उड़ती दिखाई देती हैं. उन्होंने कहा कि छोटी चिड़िया होने से गौरैयों को बाजों का खतरा बना रहता है जिसके लिए वे झाड़ीदार पौधे लगाये हुए है. ताकि बाज पक्षी से गौरैया बच सके. मेरा मानना है कि यदि विश्व गौरैया दिवस के दिन से हर कोई विलुप्त होती इस पक्षी की सुरक्षा एवं संरक्षण पर ध्यान देना शुरू कर दें, तो शायद "एक थी गौरैया" भविष्य में पत्र-पत्रिका में पढ़ना न पड़े.

-गुलशन सिंह














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