चिराग तले अंधेरा: यहां "जज साहब" को ही मिला मरणोपरांत न्याय ..
बक्सर न्यायालय में ही कर्तव्य के दौरान हृदय गति रुकने से उनका निधन 16 नवम्बर 2010 को हो गया था. मृत्यु के 9 साल बाद सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी ज़मानत और एन डी पी एस के मामले में दिये गए फैसले को सही करार देते हुए पटना उच्च न्यायालय के उनके खिलाफ कार्यवाही एवं आदेश को निरस्त करते हुए 25 हज़ार रुपये खर्च भी अधिरोपित किया है.
- उच्चतम न्यायालय ने फैसले को ठहराया सही, उच्च न्यायालय से कहा-तुरंत दें प्रोन्नति का लाभ.
- किया आदेशित, ठोस सबूत मिलने पर ही न्यायिक पदाधिकारी पर हो कार्रवाई.
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: चिराग़ तले अँधेरा यह एक कहावत ही नहीं है बल्कि बक्सर स्थित व्यवहार न्यायालय में आम है. फरियादियों को न्याय मिलने को कौन कहे जजों को भी न्याय के लिए तरसना पड़ता हैं. बक्सर में पदस्थापित एक अपर जिला सत्र न्यायाधीश स्व. कृष्ण प्रसाद वर्मा को सर्वोच्च न्यायालय से आखिरकार न्याय मिला है. हालांकि, उस न्याय के फैसले को देखने के लिए वह अब इस दुनिया में नहीं है. न्यायालय ने उनकी प्रोन्नति एवं अन्य लाभ को 31 दिसम्बर तक निपटाने एवं न्यायालय ख़र्च के रूप में 25 हज़ार रुपये भुगतान करने का आदेश हाई कोर्ट को दिया है.
सुनाए गए फैसले को लेकर दोषी बनाए जाने पर लगा था सदमा:
मूल रूप से बलिया के तेज तर्रार वकील स्व. वर्मा एक ही झटके में सीधे अपर सत्र न्यायाधीश की परीक्षा में अव्वल आकर न्यायिक सेवा में योगदान दिया था लेकिन, छपरा न्याय मंडल में ज़मानत के एक मामले एवं एन डी पी एस के एक मामले में उनके द्वारा सुनाए गए फैसले को लेकर उच्च न्यायालय ने उनका प्रोन्नति आदि रोक कर विभागीय जांच शुरु की थी. इस घटना के बाद अपनी मेधा एवं कुशाग्र बुद्धि के धनी स्व. वर्मा को इतना सदमा लगा कि, बक्सर न्यायालय में ही कर्तव्य के दौरान हृदय गति रुकने से उनका निधन 16 नवम्बर 2010 को हो गया था. मृत्यु के 9 साल बाद सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी ज़मानत और एन डी पी एस के मामले में दिये गए फैसले को सही करार देते हुए पटना उच्च न्यायालय के उनके खिलाफ कार्यवाही एवं आदेश को निरस्त करते हुए 25 हज़ार रुपये खर्च भी अधिरोपित किया है.
न्यायालय ने कहा, सबूत मिलने पर ही शुरू करें कार्रवाई:
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय को अधीनस्थ न्यायालय के न्यायिक पदाधिकारियों पर कोई भी कार्यवाही उनके किसी न्यायिक आदेश व फैसलों को आधार बना कर नहीं करने का आदेश दिया है. साथ ही नसीहत देते हुए कहा कि, जब कोई ठोस न्यायिक दुराचार या भ्रष्टाचार के सबूत मिलने पर ही कार्यवाही शुरू की जाए. न्यायिक फैसलों के विरुद्ध न्यायिक उपचार की व्यवस्था संविधान में है. ऐसे में न्यायिक अधिकारियों पर महज उनके फैसलों के आधार पर कारवाई अधीनस्थ न्यायालय के न्यायिक स्वतंत्रता के लिए घातक है.
विभागीय कार्रवाई ने अवसाद में पहुंचाया:
न्यायिक सूत्रों ने बताया कि, बक्सर के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश स्व. कृष्ण प्रसाद वर्मा यदि जीवित रहते तो उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति तक पहुंच जाते. लेकिन, विभागीय कारवाई ने उन्हे उल्टे अवसाद एवं संत्रास में कर्तव्य करने को मजबूर किया एवं इसी के दबाव में काल कलवित हो गए. जीते जी वह "जज साहब" होकर भी न्याय नहीं पा सके थे. मरने के 9 साल बाद सर्वोच्च न्यायालय का न्याय वास्तव में चिराग तले अंधेरा की तस्वीर ही बयां की है. 16 नवंबर यानी कि शनिवार को उनकी पुण्यतिथि है.
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