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Buxar Top News: अत्यधिक दोहन की मिल रही सज़ा: पूरे गाँव के चापानलों से पानी आना बंद ...



प्रत्येक घर में बोरिंग लगाया गया है साथ ही साथ बारिश ना होने से पटवन के लिए भी भूगर्भ के जल को उपयोग में लाया जाता है. जैसे ही बोरिंग स्टार्ट होता है, जिन चापानलों से थोड़ा बहुत पानी भी आ रहा होता है वह भी बंद हो जाता है. 


- भूगर्भ के जल का असीमित दोहन बना जलस्तर घटने का कारण.
- पीने के पानी के लिए भी ग्रामीणों को रहना पड़ता है दूसरों के भरोसे.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग मनुष्य पर भारी पड़ने लगा है बड़े शहरों की तरह अब बक्सर जैसे ग्रामीण इलाके में भी अब लोगों को प्राकृतिक संसाधनों के संकट से जूझना पड़ रहा है. आसमान से बरसती आग जल स्रोतों को सुखाकर रख दिया है जिसके कारण एक ओर जहां किसानों के समक्ष विकट स्थिति पैदा हो गई है, वहीं दूसरी तरफ अब भूगर्भ के जल स्रोतों ने भी धोखा देना शुरु कर दिया है. जिसके कारण लोगों को पेयजल की भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है.

गाँव के 90 फीसद चापाकलों से नहीं आ रहा पानी:  

जिले में कई प्रखंडों के कई पंचायतों में भूगर्भ के जलस्तर के खिसक जाने के कारण चापानलों ने काम करना बंद कर दिया है. सदर प्रखंड के कमरपुर पंचायत के अंतर्गत बलरामपुर गांव में एक साथ तकरीबन 50 चापानलों ने काम करना बंद कर दिया स्थानीय निवासियों ने बताया कि गांव में लगभग प्रत्येक घर में बोरिंग लगाया गया है साथ ही साथ बारिश ना होने से पटवन के लिए भी भूगर्भ के जल को उपयोग में लाया जाता है. जैसे ही बोरिंग स्टार्ट होता है, जिन चापानलों से थोड़ा बहुत पानी भी आ रहा होता है वह भी बंद हो जाता है. उन्होंने कहा कि पेयजल की समस्या होने के कारण लोग और आसपास के घरों में जिनके यहां बोरिंग लगा है वहां से जाकर पानी लाते हैं तथा अपनी प्यास बुझाने का उपाय करते हैं.  उन्होंने बताया कि गांव के तकरीबन 90 फीसद से अधिक घरों के चापानलों ने काम करना बंद कर दिया है. अगर समय से बारिश नहीं हुई तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है.

देर रात आता है थोड़ा-थोड़ा पानी:

उन्होंने बताया कि दिन भर जल विहीन चापानलों शोभा की वस्तु बने रहते हैं. दिन में अगर पानी की आवश्यकता हो तो आसपास के घरों में चल रहे बोरिंग से ही उस आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है. वहीं देर रात जब सोने का समय होता है तब जाकर चापानलों से थोड़ा-थोड़ा पानी आना शुरू होता है.

पहले नहीं थी यह स्थिति:

ग्रामीणों का कहना है कि आज से पाँच वर्ष पूर्व तक यह स्थिति नहीं थी. भूगर्भ के जल का निरंतर और असीमित दोहन जल स्तर के घटने का मुख्य कारण है. उन्होंने बताया कि इन दिनों प्रत्येक घर में बोरिंग का प्रचलन बढ़ा है. साथ ही साथ सिंचाई के लिए भी बोरिंग का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है. इस प्रयोग में लोग खपत से ज्यादा पानी को बर्बाद भी कर देते हैं. जिसका नतीजा जल स्तर के घट जाने के रूप में सामने आया है.

बारिश होने के बाद ठीक हो जाता है जलस्तर:

 ग्रामीणों का कहना है कि बरसात हो जाने के बाद जलस्तर ठीक हो जाता है लेकिन पुनः गर्मी आते आते स्थिति ऐसी हो जाती हो. जो चापानल बारिश के दिनों में बेहतर कार्य कर रहे होते हैं उन्हीं दिनों चापानलों से पानी निकालना गर्मी के दिनों में मुश्किल हो जाता है. जबकि पानी कि सबसे अधिक आवश्यकता होती है.

बहरहाल, प्रकृति के साथ खिलवाड़ कि जो सजा हमें भविष्य में मिलने वाली है उसका महत्व छोटा नजारा मात्र है. प्रकृति चीख-चीखकर यह कह रही है की अब बस !

















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