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आदर्श नव वर्ष 2019 में 'इन अंतर्राष्ट्रीय बदलावों' को आप भी देखना चाहेंगे?


2018 बीत चुका है और अब 2019 की नयी सुबह के साथ हम सभी नए साल में प्रवेश कर चुके हैं. अंतर्राष्ट्रीय स्टार पर हमने कई चीजें ऑब्ज़र्व की होंगी, जो 2018 में बेहद महत्त्व की रही हैं. आइये 3 महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर नज़र दौड़ाते हैं, जो एक वैश्विक नागरिक के तौर परहमारे-आपके जीवन को डायरेक्ट / इनडायरेक्ट प्रभावित करती हैं:

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बीते साल कई बड़ी घटनाएं हुई हैं, किन्तु सुरक्षा के लिहाज से उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच बातचीत एक प्रमुख घटना रही है. यूं तो सीरिया भी युद्ध से बुरी तरह पीड़ित है, किन्तु उत्तर कोरिया की भौगोलिक और राजनैतिक स्थिति के साथ उसका परमाणु शक्ति संपन्न होना बेहद अलग मसला है. अमेरिका को नार्थ कोरिया से बातचीत में उदार होना चाहिए, क्योंकि यह एक ऐसा मसला है जिससे न केवल अमेरिका, बल्कि चीन समेत दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देश सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं. यह बात भला किस प्रकार भूली जा सकती है कि उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों के एक इस्तेमाल से जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों का अस्तित्व मिट सकता है, बेशक वह खुद भी क्यों न मिट जाए.

हालाँकि, दक्षिण कोरिया में अमेरिकी मिसाइल रक्षा प्रणाली-थाड की तैनाती अवश्य है, वह भी कई हज़ार अमेरिकी सैनिकों के साथ, किन्तु किसी पागलपन को रोकने के लिए इतना पर्याप्त नहीं है, इसलिए बातचीत की ओर सार्थकता से बढ़ना ही एकमात्र उपाय है.

2019 में अगर यह मुद्दा सुलझाव की तरफ बढ़ता है तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी चिंता का निपटान संभव हो सकेगा. हालाँकि, नए साल के पहले दिन ही किम जोंग उन ने अमेरिका पर प्रतिबन्ध न हटाने की वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए आदतन धमकी दी है. जाहिर तौर पर इस मसले से जुड़े तमाम देशों को बातचीत में संजीदा होने की आवश्यकता है.

इसके अतिरिक्त चीन की अपारदर्शी नियमों के आधार पर छोटे देशों को आर्थिक उपनिवेश बनाने की कोशिशों पर भी लगाम लगना चाहिए. मालदीव और श्रीलंका जैसे छोटे देश सत्ता बदलाव के पश्चात चीन के चंगुल से निकलने को छटपटा रहे हैं. चीन वन बेल्ट, वन रोड (ओबीओआर) परियोजना के जरिये एशिया और अफ्रीका के गरीब और छोटे देशों को टारगेट करता जा रहा है, जिसका अंततः परिणाम उस छोटे देश को आर्थिक रूप से गुलाम बनाना ही प्रतीत हो रहा है. रही सही कसर चीन का जिबूती में सैन्य अड्डा बनाने का कार्य सारी कहानी खुद ब खुद कह देता है.
हालाँकि, चीनी लोग यह तर्क दे रहे हैं कि वह गरीब देशों को आर्थिक विकास की राह पर ले जा रहे हैं, किन्तु यह समझना दिलचस्प है कि पाकिस्तान जैसे देश में चीन की आर्थिक मदद के खिलाफ बड़ी आवाज़ उठने लगी है.
जाहिर तौर इसके प्रति अन्य सक्रीय देशों को एकजुट होकर सम्मिलित बर्ताव करने की दिशा में कार्य करना चाहिए.

तीसरा सबसे बड़ा परिवर्तन जो मैं 2019 में देखना चाहूंगा, वह संयुक्त राष्ट्र की सक्रियता से जुड़ा हुआ है. अमेरिका में ट्रम्प के उभार के बाद विश्व का यह सबसे बड़ा संगठन उस तरह से सक्रीय नहीं है, जैसे इसे होना चाहिए. इसके लिए सुरक्षा-परिषद् में सुधार और भारत, ब्राजील समेत तमाम देशों को इसे शामिल करने की मांग दशकों से की जा रही है. ज़ाहिर तौर पर अगर वैश्विक स्तर पर ठीक प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है तो कोई भी संस्था प्रभावी नहीं रह सकती है.

वहीं अगर बात संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था की हो तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसका गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ था और इसका मकसद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आ रही समस्याओं का व्यावहारिक हल ढूंढना था. पर यह कुछेक बड़े देशों के ऊपर डिपेंड होकर रह गया और ट्रम्प, पुतिन और जिनपिंग जैसे नेताओं की मजबूती और उभार से यह संगठन अपना प्रभाव लगातार खोता जा रहा है.

संगठनों की असफलता अगर हमें समझनी हो तो संयुक्त राष्ट्र संघ से पहले गठित 'लीग ऑफ़ नेशंस' की असफलता की कहानी हमें ज़रूर पढ़नी समझनी चाहिए. आखिर 'लीग ऑफ़ नेशंस' असफल हुआ तभी तो द्वितीय विश्व युद्ध की नौबत आन पड़ी.
समझा जा सकता है कि अगर नियामक संस्थाएं कमजोर होंगी तो हमें भिन्न प्रकार की परिस्थितियां प्रभावित करेंगी ही और वह परिस्थितियां कई बार 'विश्व युद्ध' जैसी विध्वंसक परिस्थितियां भी हो सकती है, इस बात में अतिश्योक्ति तो नहीं है?

इन तीन मुद्दों के अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और भी कई मुद्दे हैं, जिनका हल 2019 में निकालने का प्रयास होना चाहिए, जैसे सीरिया में हो रहा युद्ध, जिससे एक बड़ी आबादी लगातार पीड़ित होती जा रही है. पाकिस्तान जैसे देशों का आतंकवाद को लगातार बढ़ावा देना भी एक बड़ी वैश्विक समस्या है और इसी कारण उसका अमेरिका से दशकों पुराना सम्बन्ध भी बिगड़ गया है और अमेरिका ने उसको दी जा रही आर्थिक मदद पूरी तरह से रोक दी है. पर क्या वह वाकई समझेगा, इस बात की सम्भावना पर किन्तु-परन्तु लगा हुआ है. इसके अलावा मध्य-पूर्व में तेल का खेल और सऊदी अरब से जुड़े पत्रकार खशोजी की हत्या के मामले ने सऊदी में राजतन्त्र की ओर दुनिया भर का ध्यान खींचा है. मध्य पूर्व में ही ईरान की अमेरिका से परमाणु मुद्दे पर हुई बातचीत टूटने से दुनिया का ध्यान इस ओर गया है.

ऐसे और भी कई अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे हो सकते हैं जो इस नए साल में सुलझाए जाने आवश्यक हैं, किन्तु नार्थ कोरिया, चीन का विस्तारवाद और संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता निश्चित रूप से सर्वाधिक महत्व का है और इस बात से शायद ही किसी को इंकार होगा.

आप क्या कहते हैं?
आपकी नज़र में वह कौन से अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे हैं, जिन्हें 2019 में सुलझाया जाना चाहिए, कमेंट-बॉक्स में अवश्य बताएं.


मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.















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