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मौनी अमावस्या पर लाखों श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी ..

मिथिलांचल से पहुंचे मनोहर सेठ ने बताया कि वह प्रत्येक वर्ष बक्सर आते हैं तथा यहां स्नान कर पवित्र गंगा जल ले जाकर भगवान शंकर को चढ़ाते हैं. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान मनोवांछित फल प्रदान करते हैं

- गंगा घाट पर उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब.

- भीड़-भाड़ के कारण ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त करने में आई परेशानी.



बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: मौनी अमावस्या इस बार सोमवार को पड़ी, जिससे कि इसका महत्व काफी बढ़ गया था. एक ओर जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु मौनी अमावस्या के स्नान के लिए कुंभ में गए हुए हैं, वहीं बक्सर में भी लाखों लोगों ने विभिन्न गंगा घाटों पर गंगा में आस्था की डुबकी लगाई. इस दौरान रेलवे स्टेशन से लेकर  रामरेखा घाट तथा अन्य घाटों पर जाने वाले मार्गों पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब दिखाई दे रहा था. दूरदराज से लोग बसों तथा छोटी गाड़ियों में सवार होकर भी पहुंचे थे जिससे कि नगर में  ट्रैफिक व्यवस्था  को सुचारू रूप से चलाने में भी दिक्कत आ रही थी  हालांकि, ट्रैफिक इंचार्ज अंगद सिंह तथा अन्य पुलिसकर्मियों की सूझबूझ से जाम नहीं लगने दिया गया. गंगा स्नान को लेकर दूरदराज से श्रद्धालुओं की भीड़ रविवार से ही उमड़नी शुरू हो गई थी. लोग दूर-दराज से बक्सर पहुंचे थे. मिथिलांचल से पहुंचे मनोहर सेठ ने बताया कि वह प्रत्येक वर्ष बक्सर आते हैं तथा यहां स्नान कर पवित्र गंगा जल ले जाकर भगवान शंकर को चढ़ाते हैं. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान मनोवांछित फल प्रदान करते हैं.

पंडित विनय मोहन तिवारी बताते हैं कि सोमवती अमावस्या पर स्नान-ध्यान का महत्त्व सुहागिनों के लिए अधिक बताया जाता है. पति के लम्बी आयु और सुख समृद्धि के लिए सुहागिन इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करती हैं. पीपल वृक्ष के मूल को विष्णु का प्रतीक मानकर उसकी 108 बार परिक्रमा करनी चाहिए. शास्त्रों की मान्यता है कि जो स्त्री अपने सुहाग की रक्षा की कामना करती हैं. पीपल वृक्ष में सभी देवों का वास होना माना जाता है. इसके मूल में विष्णु, तने में शिव तथा अग्र भाग में ब्रह्मा विराजमान रहते हैं. पंडित जी ने कहा कि सोमवती अमावस्या को पीपल वृक्ष के नमन से एक हज़ार गायों के दान का भी फल मिलता है.


जानें क्या है मौनी अमवस्या कि पौराणिक  कथा: 

पुराणों के अनुसार कांचीपुरी में एक ब्राह्मण रहता था. उसका नाम देवस्वामी तथा उसकी पत्नी का नाम धनवती था. उनके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी. पुत्री का नाम गुणवती था. ब्राह्मण ने सातों पुत्रों को विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा.

उसी दौरान किसी पंडित ने पुत्री की जन्मकुंडली देखी और बताया - सप्तपदी होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी.

तब उस ब्राह्मण ने पंडित से पूछा- पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा? 

पंडित ने कहा- सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा। फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया - वह एक धोबिन है. उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है. उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहां बुला लो.

तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिहंल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया. सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए. उस पेड़ पर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था. उस समय घोंसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे. गिद्ध के बच्चे भाई-बहन के क्रिया-कलापों को देख रहे थे. सायंकाल के समय उन बच्चों (गिद्ध के बच्चों) की मां आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया.

वह अपनी मां से बोले- नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं. जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे. तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली - मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है.

इस वन में जो भी फल-फूल कंद-मूल मिलेगा, मैं ले आती हूं. आप भोजन कर लीजिए. मैं प्रात:काल आपको सागर पार करा कर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी और वे दोनों भाई-बहन माता की सहायता से सोमा के यहां जा पहुंचे. वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़ कर लीप देते थे.


एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा - हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है? 

सबने कहा -हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा? 

किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ. एक दिन उसने रहस्य जानना चाहा. वह सारी रात जागी और सबकुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई. सोमा का उन बहन-भाई से वार्तालाप हुआ. भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी.

सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया. मगर भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया. आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी.

चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा - मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना. मेरा इंतजार करना और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई.

दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया. सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया. सोमा ने तुरंत अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया. तुरंत ही उसका पति जीवित हो उठा. सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई. उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई. 

सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की. इसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे. 

निष्काम भाव से सेवा का फल मधुर होता है, इस व्रत का यही लक्ष्य है.


इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए मौनी अमावस्या के पर्व पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब गंगा स्नान कर पंडित एवं गरीबों  को यथाशक्ति दान भी करते हैं.

बक्सर टॉप न्यूज के लिए इन्द्रकांत तिवारी की रिपोर्ट .










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